KurukhTimes.com

Write Up

आलेख / Articles

कुँडुख भाषा की लिपि : तोलोंग सिकि

कुँडुख भाषा की लिपि : तोलोंग सिकि तोलोंग सिकि एक लिपि है। यह लिपि, भारतीय आदिवासी आंदोलन तथा झारखण्ड का छात्र आंदोलन की देन है। इस लिपि को आदिवासी कुंडुख (उराँव) समाज ने अपनी भाषा की लिपि के रूप में स्वीकार किया और पठन-पाठन में शामिल कर लिया है। इस लिपि के प्रारूपण में मध्य भारत के मुख्य आदिवासी भाषाओं की ध्वनियों को आधार माना गया है। लिपि चिह्नों के संकलन हेतु हल चलाते समय बनी हुई आकृतियाँ, परम्परागत पोशाक तोलोंग को कमर में पहनने से बनी आकृतियाँ, पूजा अनुश्ठान में खींची गयी आकृतियाँ, डण्डा कट्टना पूजा अनुश्ठान चिह्न तथा दीवारों में बनायी जाने वाली आकृतियाँ एवं खेल-खेल में खींची जाने वाली र

कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी   

भारत के राष्ट्रीय विकास में कृषि अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तथा आनेवाले वर्षों में कृषि पर आधारित उद्योगों की प्रबल संभावना के मद्देनजर आने वाले समय मे इसके और महत्वपूर्ण होने की संभावना है। कृषि अर्थव्यवस्था का संचालन ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाली आबादी द्धारा किया जाता, जिसमें वयस्क पुरूषों एवं महिलाओं के अतिरिक्त बालक एवं बालिकाओं  की महत्वपूर्ण भ्ाूमिका होती है। कृषि एक पारिवारिक उद्यम है, जिसका क्रियान्वयन परिवार के सभी लिंग एवं आयु वर्ग के द्धारा किया जाता है। भारत जैसे विकासशील देशों में अधिकाश आहार उत्पादन महिलाएँ ही करती हैं। तथा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ वि

बीजिरपो (श्राद्ध हेतु एकत्र किया गया धन)

समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में समय-समय पर खबर छपती है - एक परिवार, पैसे की कमी के चलते अपने कांधे पर ढोकर अपने परिजन का अंतिम संस्कार को ले गया अथवा एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए कोर्इ मद्दगार नहीं मिला तो बच्चे और महिलाएँ, पड़ोस के एक ठेले में लेकर गये आदि, आदि।

धुमकुड़िया में फिर दीया जला रहे हैं

जंगल में तीर, धुनष, टंगिया
अखड़ा में मांदर, नगाड़ा, ढोल,ढांक, बांसुरी, ठेसका, भेंर
धुमकुड़िया के आंगन में बसुला, दउली, कुल्हाड़ी से
बनाते हल,तीर धनुष,बलुवा, कुदाल का बेंट,
बुनते कभी मछली के जाल, कभी बनाते गुलेल, कभी ढेलवाँस,
दिमाग के टोकरी में,दउरी में इससे अधिक सजा लेते थे –
बहुत कुछ हमारे आजा आजी, नाना नानी, परदादा आदि
और आज ?
आदिवासी युवा, इन सबका 
अनजाना पाठ खोज रहे हैं, राह खोज रहे हैं
पहाड़ पर कोई लालटेन या ढिबरी, चमक रही हो जैसे
आधुनिक भवन के बीच, पक्के घरों में
वह अपने पुरखों का लूर-दरवाजा खटखटा रहे हैं

आदिवासियों के सवालों पर चुप्पी क्यों?

भारत जैसे महादेश में आज आदिवासियत पर विमर्श अपरिहार्य है। वास्तव में यह केवल अस्मिता अथवा अधिकारों का मसला मात्र नहीं है - आदिवासियत की प्रासंगिकता उन तमाम संदर्भों से भी है, जो आदिवासी समाज के संपन्नता से विपन्नता तक के संक्षिप्त इतिहास में आज कहीं जाहिर-अजाहिर तौर पर दर्ज हैं। सरकारों के लिये आदिवासियत का पूर्ण-अपूर्ण अर्थ आदिवासी समाज का 'संवैधानिक दर्जा' है। एक ऐसा संवैधानिक दर्जा, जिससे जनमे कानूनों और नीतियों के जरिये आदिवासियों को तमाम अधिकार दिए तो गए, लेकिन उसे लागू करने की वैधानिक जवाबदेही उस तथाकथित कल्याणकारी राज्य के रहमोकरम पर छोड़ दी गई, जो संपन्न आदिवासी समाज को विपन्न बना दे

मुक्का सेन्दरा अरा खुटी जगाबअ़ना

ईन्नेलता मुक्का सेन्दरा (जनी शिकार) कुँड़ख़र ही मजही ती बहरी उरखर जेतआ छोटानागपुरिया पेल्लर अरा मुक्कर गही जितंकार परब बेसे मंज्जा केरा। र्इ मुक्का सेन्दरा 12 बछर नु ओंगओल मनी। केरका 2017 चान नु मुक्का सेन्दरा मंज्जा। आ चान बर्इसाक पुनर्इ गूटी नु पद्दा गइनका मुक्का सेन्दरा बे:चतारा। पद्दा का दृाहर, पढ़ुवा का मल पढ़ुवा, पेल्लर का मुक्कर, र्इ सेन्दरा नु संग्गे मना गे चिहुँट उर्इयर। जेट्ठे ता बिड़ना हुँ मुक्कारिन अरबा पोल्ला अरा कुक्क चप्पो बेड़ा ता बिड़नन सहअर सेन्दरा बिच्चयर। सेन्दरा नु एन्देरआदिम ख़क्खरा का मला पहें बे:चा गे गा रिज्झ लग्गिया दिम ह’अन। ओण्टा पेल्लो फोन नु तंग सर्इहा गने कछनखरआ लगिया

धरमुस बिट्ठी केरस (एक इतिहास)  

देवनाथ सायस गही समधियान कुकड़ो पद्दा रहचा। तंगदन ओन्दर’आ गे गोल्लस धरमुसिन बिट्ठी धरचस। र्इ चान पर्इयाँ उरूख़कन्ती आस तंगदा गने पुरी सहर तिरिथ काला गे मनमनरस। धरमुस मून्द गोटंग अउर कुँड़खा़रिन बिद्दयस। देवनाथ गोल्लस गहि तिरिथ उरूखना उल्ला पतरा ए:रर की टिपिरकी रहचा। अँवती धरमुस तड़तड़ाय के कुकड़ो पद्दा केरस। पालकी नुं बिजोली बींड़िन अरग’अर की धरमुस अरा संग्गियर हँफा-हँफी किर्रा लगियार। ओन्टे दरंगन कट्टतो’ओ बी:री पालकी ओन्टे टिलहा संग्गे धस्सरा केरा। दुक्खे ने:का हों मला मंज्जा, न नी:क’र्इम खत्तरर न मुड्डियर, पालकी भइर ओन्द कों:ड़ा नुं ख़ज्ज ती धस्सरा। बिजोली, एड़पा अंड़सर की र्इ ख़ी़रिन तम्बस हेद्दे तिं

कुँड़ख़र ही सोहरई परब

हुल्लो परिया ता कत्था तली। टोड़ंग-परता मजही नू ओण्टे पद्दा रहचा। आ पद्दा ता उरमी, आलर-ते:लर, अड्डो-मेक्खो, ओ:ड़ा-ख़ो:ख़ा, जिया-जउँत दव कुना उज्जा-बिज्जा लगिया। बअ़नर - आल जिया उरमी उल्ला ओण्टे बेसेम मल रअ़र्इ। एका तरती एन्देर ता:का बरचा का अन्ति धरमे ही छया-भया। अनभनियाँ, रा:जी की:ड़ा मंज्जा। केरमे-केरमे आलर, नन्ना-नन्ना आ:लोन तमहँय कूल गे लवआ-पिटा हेल्लर। ओ:ड़ा-ख़ा:ख़ा गने अड्डो-मेक्ख़ोन हूँ पिटा-पिटा मो:ख़ा हेल्लरर। आलर गही एन्ने दसा मंज्जा का अड्डो-मेक्खो हूँ आलर गने रूसी मना हेल्लरा। अड्डो-मेक्खो ही रूसी मंज्जका का अन्ति एन्देर, ओये गही दुदही हूँ, बत्ता हेल्लरा। ओ:ये गही दुदही बर्इत्तका ती आ:लर द

पद्दा ता देबी अयंग

बअ़नर हुल्लो परिया नु ओण्टा कुँडुख़ बे:लस तंगआ बेलख़ा नु दव कुना रा:जी-पा:टी चलाबअ़आ लगियस। एड़पा-पल्ली, बेलख़ा, आ:लर अरा सँवसे जिया-जँऊत बे:लस गही बेलख़ा नु निचोत रअ़आ लगिया। एन्ने बेलख़ा रा:जी नु बे:लासिन अम्मबर ने:का हुँ ससर्इत मल रहचा। बे:लस रा:जी चलाबअ़ओ बा:री गा डिढ़गर मना लगियस पंहेस एड़पा उला कलपारआ लगियस। आस गही एड़पा आ:लर ती निन्दकम रअ़आ लगिया, पंहेस आरिन ए:रर आस गही जिया मल सालआ लगिया। आस गही आ:ली सुन्दराही कुना रहचा अरा धरमे बंगस गही दव कुना ओहमा पा:ड़ा लगिया। बे:लस हूँ तंग बीं:ड़ी गने अकय चोन्हा नना लगियस अरा बीं:ड़ी हूँ बे:लासिन अकय संगरा अरा हियाव चिअ़आ लगिया। एन्नेम उल्ला कट्टा लगिया। ब

बारहो भार्इ असुरर अरा तेरहो भार्इ लोधरर

बअ़नर, अद्दी परिया नु बारहो भार्इ असुरर अरा तेरहो भार्इ लोधरर, उल्ला-मा:ख़ा पन्ना कमआ गे कूट्ठिन धुकआ लगियर। आर गही कूट्ठि धुकना ती मोजख़ा (धुआँ) मेरख़ा नु अरगा लगिया। अदिन धरमेस गही घोड़ो हंखराज-पंखराज सहआ पोल्ला दरा ओनना-मो:ख़नन अम्बिया चिच्चा। हंखराज-पंखराज घोड़ो गही दसन ए:रर धरमेस गे दव मल लग्गिया केंधेल, ख़ने आस ढिचवन मना नना गे तर्इय्यस। ढिचवा धरमेस गही आर्इनकन आ:ना गे केरा दरा असुरर अरा लोधरा भर्इयोरिन बरजा:चा मुन्दा आर धरमेस गही कत्थन मल बदचर। र्इ ढिचुआ एमन बरजआ बरचकी रअ़र्इ बअर, अदि गहि ख़ोलन सँड़सी ती धरचर। आ बीरिम ढिचुवा गहि ख़ोला खम्भा लेखा मंज्जा दरा इन्ना गूटी अन्नेम रअ़र्इ। आ ख़ो:ख़ा, धर