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कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी   

भारत के राष्ट्रीय विकास में कृषि अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तथा आनेवाले वर्षों में कृषि पर आधारित उद्योगों की प्रबल संभावना के मद्देनजर आने वाले समय मे इसके और महत्वपूर्ण होने की संभावना है। कृषि अर्थव्यवस्था का संचालन ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाली आबादी द्धारा किया जाता, जिसमें वयस्क पुरूषों एवं महिलाओं के अतिरिक्त बालक एवं बालिकाओं  की महत्वपूर्ण भ्ाूमिका होती है। कृषि एक पारिवारिक उद्यम है, जिसका क्रियान्वयन परिवार के सभी लिंग एवं आयु वर्ग के द्धारा किया जाता है। भारत जैसे विकासशील देशों में अधिकाश आहार उत्पादन महिलाएँ ही करती हैं। तथा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ विश्‍व आहार का लगभग 50 प्रतिशत पैदा करती हैं। महिलाएँ घर की देख-रेख और घरेलू कार्यों के साथ ही कृषि का कार्य करती हैं।

 (गुमला जिला, सिसर्इ प्रखण्ड के शिवनाथपुर पंचायत के संदर्भ में) 

  ग्रामीण महिलाओं की खासियत यह है कि वे दिन में 18 घंटे काम करती हैं। उनकी दूसरी विशेषता यह है कि उनके पास देशज ज्ञान की अतुल सम्पदा है। महिलाओं का प्रकृति के साथ घनिष्ठ रिश्ता रहा है। पेड़ पौधे, मिट्टी, पानी केे साथ  उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी जुड़ी हैं। वे न सिर्फ उन्हें पहचानती और प्रयोग करती हैं बल्कि इन संंसाधनों की रक्षा हेतु संघर्ष भी करती हैं। 

  झारखंण्ड की कृषि में कृषक महिलाओं की भागीदारी 70 प्रतिशत से अधिक है। महिलाएँ हल जोतना को छोड़कर हर कार्य में हाथ बँटाती हैं। हल जोतना महिलाओं के लिए सामाजिक रूप से निषेध है। बहुत से कृषि-कार्य जैसे रोपनी, निकौनी, कटनी, ढुलार्इ (ढोना) मिसनी, संरक्षण करना आदि कार्यो में महिलाओं की भागीदारी 100: है। खेती के साथ- साथ घर का सारा काम करती है। जैसे - भोजन, पानी, चारा, पशुओं की देख भाल, जलावन, घर-आँगन की सफार्इ, बच्चों का लालन-पालन, दवा व्यवस्था करना, बाजार करना, व्यापार करना, अनाज तैयार करना आदि। दु:ख की बात है कि महिलाओं के किसी भी कार्य का मापदण्ड नहीं है। उसके कार्य को आर्थिक रूप से मापा नहीं गया है। 

    आदिवासी महिलाएँ बहुत मामलों में शहरी महिलाओं से ज्यादा आजाद ख्याल और समर्थ है। देश के सबसे सघन आदिवासी अंचल बस्तर की बात है। माध्य प्रदेश के बस्तर की आदिवासी महिला के अपरिमित अधिकारों की सबसे बड़ी बानगी यह है कि परिवार की अर्थव्यवस्था का प्रबंधन उसके हाथ है। वह खेत में काम करती है। जरी बारिश में धान के पौधों की रोपार्इ से लेकर कटार्इ तक का काम उसके जिम्में है, बल्कि कुछ इलाकों में तो जितनी ज्यादा खेती की जमीन उतनी पत्नियों का सिधंात बहुत आम है। बस्तर इलाके के बस्तर गाँव में ऐसे कर्इ लोगों से सामना पड़ा जिनकी एक से ज्यादा पत्नियाँ है। उसमें गाँव के पटेल और जमींदार भी शामिल है। उनकी दलील थी कि हर दस एकड़ जमीन पर एक पत्नी है, उनकी इस तरह, 90 एकड़ जमीन के लिए वह नौ शादियाँ किए हुए थे और इसकी वजह यह थी कि बस्तर की महिलाएँ बड़ी मेहनतकश है। खेतों में काम कर पाना पुरूषों के बस की बात नहीं है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि महिलाएँ इन पुरूषों के परिवार की खेती करने वाली जरखरीद गुलाम है। जब पत्नी खेती बाड़ी और बाजार के बाहरी काम में लगी हो तो उसका पति घर के काम-धाम देखता है। बच्चों की परवरिश करता है और बच्चे भी मनमाने नहीं हिसाब से औरत की मर्जी से सहमति से।
वर्ष    ग्रामीण    शहरी कुल
2011    33    2.8    24.6
2001    37.1    4.1    32.9

    2011 की जनगणना के अनुसार देश भर में कुल किसानों की संख्या 24.6 फीसदी है जिसमें ग्रामीण भारत में इनकी संस्था 33 फीसदी है। जबकि शहर में इनकी संख्या मात्र 2.8 फीसदी है। 
2011 एवं 2001 में देश में महिला किसानों की संख्या :-

प्रभात खबर, राँची, बुधवार 13 अगस्त, 2014 
 
उद्देश्य - कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी     :-
विधि एवं क्षेत्र - इस शोध का अघ्ययन के लिए हम ने साक्षात्कार आवलोकन एवं संख्यिकी विधि का प्रयोग किया। अध्ययन क्षेत्र सिसर्इ प्रखण्ड के शिवनाथपुर पंचायत के विशेष संदर्भ में है।                                                     शिवनाथपुर पंचायत में कुल 9 गाँव है, 1. सैन्दा 2. छोटा सैन्दा, 3. सियंाग, 4. कोड़ेदाग, 5. पण्डरानी, 6. जलका, 7. शिवनाथपुर, 8. प्रेम टोली, 9. चरकु टोली।         
        शिवनाथपुर पंचायत की प्रोफाइल
  1    यहाँ की कुल जनसंख्या                     5665
  2    महिलाओं की कुल जनसंख्या           2835
  3    पुरूषों की कुल जनसंख्या                   2830
  4    कुल घरों की संख्या    1099
  5    बी.पी.एल. परिवार की संख्या                          652 (2002-2007)
  6    अतिरिक्त बी.पी.एल. परिवार की संख्या           123
  7    कुल स्कूल की संख्या    9
  8    उपस्वस्थ्य केन्द्र की संख्या                     1
 9    आँगनवाड़ी की संख्या                           12
 11    छोटी नदी एवं बड़ी नदी    3 + 2 = 5
 12    कुआँ एवं तालाब    93 + 14 = 107
                 (पंचायत सर्वे के अनुसार तालिका)

घरेलू दैनिक कार्य :-
गुमला जिला स्थित सिसर्इ प्रखण्ड के शिवनाथपुर पंचायत की महिलाएँ कृषि कार्य करने के पहले अपने घरों का काम को करती हैं। महिलाएँ पुरूषों के साथ ही तीन-चार बजे सुबह उठती हैं। नित्यकर्म करने के बाद, भोजन बनाने के लिए अनाज साफ करती है। गोहाल से मवेशियों के बाहर होते ही एक महिला गोबर टोकरी में ढोकर गोबर गड्ढे में डाल देती है। इस तरह एक काम निपटते ही दूसरे काम में लग जाती है। दाल-भात, साग पकाती है। और अतिरिक्त चूल्हे पर धान उबालती है। घर के बाकी महिलाएँ घर के दूसरे काम को पूरा करती है। सूरज निकल जाने पर स्त्रियाँ पीने के लिए पानी लाने जाती हैं। सिर पर जल भरा घड़ा काँख में भरी गगरी (घड़ा), पीठ पर बच्चे और हाथों में बाल्टी लेकर लौटती, यह देखने में सर्कश से कम नही लगता है। आठ बजते-बजते घर का काम समाप्त हो जाता है। थोड़़ा बहुत नास्ता करती हैं और खेतों कामों में निकल जाती है। 

मौसम के अनुसार दैनिक एवं कृषि कार्य :-
      वर्षा प्रारंभ होते ही कृषि कार्य शुरू हो जाते हैं। प्रसन्नचित किसान अपने-अपने खेतों की जुतार्इ प्रारंभ कर देते हैं और धान (रोपा) की बुआर्इ के लिए बिचड़ा तैयार करना शुरू कर देते हैं। जब तक दोन खेत अर्थात् नीचला खेत तैयार नहीं होता है, तब तक किसान टॉड़ खेतों (ऊपरी खेतो) में खेतों की तैयारी करते है और बुआर्इ करते हैं। टॉड़ खेतों में मडूवा (रागी), उड़द, मकर्इ, गोड़ा, गोदली, राहड़ (अरहर), मकर्इ की बुआर्इ करते हैं। महिलाएँ इस समय अपने खेतों पर जाकर खरपतवार को हटाती है जिसे ‘लेझा बिछना’ कहते हैं। महिलाएँ टाड़ खेतों में अपने खाने के लिए साग सब्जी लगाती हैं, जिसमें ठेपा (कुदरुम, लाल खट्टे साग), सनर्इ फूल, बोदी आदि रहता है।

  वैसे तो स्वभावत: आदिवासी महिलाए कर्मठ होती है, परन्तु बरसात के दिनों में ये अधिक सक्रिय होती हैं। ऐसा लगता है जैसे इस ॠतु ने उन्हें ऊर्जा का उपहार दिया हो। वे सुबह जल्द ही उठ जाती हैं और 4 बजे के उजाले में बिचड़ा उखाड़ने चली जाती हैं। वे सूरज उगने तक धान के बिचड़ा उखाड़ती है, फिर घर आती हैं, घर में रहने वाली महिलाएँ खाना पकाती हैं और घर के सभी कामों को करती हैं। जिन घरों में मात्र एकाकी परिवार मिलते हैं उस घर की महिला के ऊपर दोहरा कार्यभार रहता है तथापि महिला प्रसन्नता पूर्वक खेतों का काम सम्पन्न कर घर के कामों का संचालन करती हैंै। खेतों में रोपनी का कार्य महिलाएँ समूह में करती हैं। गाँव में किसी एक घर में रोपा होता है तो इस घर की महिलाएँ गाँव के प्रत्येक घर से महिलाओं को अपना रोपा करने के लिए आंमत्रित करती हैं। उस दिन परिवार के लोग रोपा करने गये लोगों के लिए खाना, चखना एवं पेय पदार्थ देते हैं। महिलाएँ अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए प्रत्येक घर से रोपा करने जाती हैं और समूह में काम करती हैं। इस काम को ‘मदर्इत’ कहते हैं। सामुहिक रूप से कार्य भार उठाने तथा हँसते हुए सम्पन्न करने का अतुलनीय दृश्य बरसात में खेतों में रोपनी का कार्य देखने को मिलता है। यहाँ परस्पर मेल एवं सहयोग की बानगी मिलती है। महिलाएँ समूहों में काम करते हुए अपने उत्साह, सुख-द:ुख को एक दूसरे से बाँटती हैं।

 

वर्षा में महिलाएँ पानी भरे खेतों में काम करती हैं। इस समय ये 10-12 घंटे पानी में रहती है। घरेलू कार्यों के अतिरिक्त खेती के कार्यों में शारीरिक कष्टों जैसे :- कमर दर्द, पीठ दर्द, पैरों में पानी लगना, पैरो को मिट्टी खाना, सर्दी बुखार, खांसी, दमा, ठण्ड लगना तथा माहवारी एवं प्रजनन संबंधी सभी दु:खों को दर किनार करते हुए कृषि कार्य में लगी रहती हैं। बरसात के मौसम में दोर्इन खेत, टाड़ खेत एवं जंगलों में तरह-तरह के साग सब्जी मिलते हैं। जंगल में पुटू , रूगड़ा, खूखड़ी (मशरूम), लवर्इत साग (हरा खट्टा साग) आदि मिलता है। टाड़ खेत में इस समय तरह -तरह के साग मिलते हैं जैसे- सिलयारी साग, गंधरी साग, केना मेना साग, ओट्टा साग, हुरहुरी साग, बेग साग, चिमटी साग, कौआ गोडा साग, ठेपा साग आदि। इस तरह महिलाएँ काम करके घर लौटती हैं और साथ में साग भी तोड़ लाती हैं जो सब्जी बनाने का काम आता है रोपा खेतों में केकड़ा, मछली, घोंघा आदि को एकत्र करती हैं और सब्जी के रूप में इसका सेवन करती हैं। महिलाएँ अपने काम के साथ-साथ परिवार के लिए एक दिन का सब्जी इंतजाम भी करती जाती हैं जिससे उसे घर जा कर भाग दौड़ या सब्जी के लिए सोचना नहीं पड़ता है। इन मौसमी सागों का स्वाद एवं पोषण महत्व काफी अधिक होता है।

      बरसाती वस्तुओं का संचयण एवं संकलन अकेले या समूह में करके महिलाएँ उसे बाजार में बेचती हैं जो महिला स्वरोजगार का अद्भ्ाुद उदाहरण है। दातून-पत्ता, चार-पिठौर, आम, जामून, जंगल का साग, रूगडा, मशरूम आदि को बेच कर पैसा कमाती हैं यह कमार्इ उनकी अपनी होती है इससे परिवार चलाने में मदद मिलती है और बच्चे शिक्षा भी ग्रहण कर पाते हैं। इस प्रकार  महिलाएँ घर परिवार व समाज को महत्वपूर्ण संबंल प्रदान करती हैं। 

रोपनी खत्म होता है तो महिलाएँ घाँस निकार्इ (खरपतवार हटाना), में लग जाती है, तक यह कार्य खत्म होता है, ऊपरी टाँड़ के फसल पक जाते है। ऊपरी टाँड़ में गोड़ा, मड़ुवा, मकर्इ, उड़द पक जाते है इसे महिलाएँ कटार्इ करने में लग जाती है। इसे समाप्त करने के बाद नीचले खेत का फसल धान पक कर तैयार हो जाता है। अब महिलाएँ दोन खेतों का फसल काटना शुरू कर देती है। सुबह में महिलाएँ उल्पाहार भोजन बाँधकर ,एक बड़ी कटोरी/टिफिन में दिन का भोजन बाँधकर ले जाती है, और दिन भर खेत में धान काटती है। उधर कोर्इ महिला खलिहान के दौनी किये धान को ओसाने, बनाने लग जाती हैं। दिन भर धान काटती, शाम ढलने से पूर्व पुरूषों को छोड़ सभी महिलाएँ घर वापस लौटती हैं। लौटते समय एक मोटरी धान ढो कर लेते आती हैं। खलिहान के आस - पास के टॉड़ो से साग - सब्जी, फूल आदि तोड़कर घर प्रवेश करती हैं। दिन भर के थके होने पर भी घड़े लेकर पानी भरने जाती हैं। खेत से लौट कर रसोर्इ घर का पूरा काम संभालती हैं। 

35 - 39 घंटे प्रति सप्ताह काम करती हैं महिलाएँ     :-                
दुनिया के विकसित और अल्प विकसित देशों में महिलाएँ सप्ताह में 35 से 39 घंटे प्रति सप्ताह काम करती है। यहाँ की महिलाओं के वर्किंग स्टाइल। 
क्र.संख्या    प्रतिशत    महिलाओं द्वारा किये गये काम के घंटे
1    22.82    महिलाएँ सप्ताह में 35-39 घंटे काम करती है। 
2    35.6    पार्ट टार्इम काम करती हैं। 
3    33.73    पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के क्षेत्र में कार्यरत हैं।
4    58.7    महिलाएँ 55-64 वर्ष की उम्र तक कार्यरत है।
5    3.5    बेरोजगार हैं।
प्रभात खबर राँची, सोमवार 18 अगस्त 2014

शिवनाथपुर पंचायत में सिचार्इ के लिए कुआँ, बाँध एवं नदी है किन्तु ये बरसाती है,जिससे खरीफ फसल उगाने में दिक्कते आती है जिनके खेत नदी, तालाब के किनारे है वे अपने खाने के लिए गेहूँ लगाते है। ये भी बहुत कम होते हैं। गेहूँ के साथ सरसों, आलू, प्याज,कद्दू आदि लगाते हैं।

इस पंचायत की आदिवासी महिलाएँ अन्य समुदाय के तुल्लात्मक रूप से स्वाभावत: कर्मठ तथा मेहनती होती है। एक आदिवासी पति-पत्नी अपने परिवार को चलाने के बहुत मेहनत करते है ये खेती पर अधिक निर्भर रहते हैं। जिन परिवार के पास सिचार्इ की सुविधा नहीं होती है साथ ही उनका खेत किसी नदी, तालाब या ड़ोडहा (छोटा नाला) के पास नहीं होता है तब पति-पत्नी मिल कर अपने खेतों में कुआँ, डाड़ी खोद लेते हैं, और उससे फसलों  में सिचार्इ करते है। यह उनके कर्मठता का परिचायक है।

महिलाएँ परम्परागत विधि से कृषि करती हैं उसमें वे गोबर खाद, पत्ता, राख आदि डालती है, इस पंचाचयत की महिलाएँ व्यावसायिक फसले जैसे :- गन्ना,लहसून, मिर्च हरी सब्जियाँ आदि अधिक उगाती है जिन फसलों से अधिक लाभ मिले और अधिक दिनों तक संरक्षित कर रखा जा सके। वैसे फसलों को उगाया जाता है।

महिला कृषि

कृषि कार्यों में समस्याएँ :-
स्वाभविक है, महिलाओं द्वारा सम्पादित किये जाने वाले काम का ज्ञान उन्ही के पास है। परन्तु इन कामों से सम्बन्धित संसाधनों पर पुरूषों का स्वामित्व है। निर्णय उनका होता है। आदिवासी महिलाओं को भ्ाू-सम्पति पर अधिकार नहीं है। जिसे वे बैंक से कर्ज नहीं ले पाती हैं। इन सब कारणों से महिलाएँ कृषि क्षेत्र में पिछड़ी हुर्इ हैं। महिलाओं की समस्याएँ, आवश्यकताएँ एवं प्राथमिकताएँ पुरूषों से भिन्न है। आज अगर महिलाएँ पिछड़ी हुर्इ है तो उसका मुख्य कारण है कि उनकी समस्याओं, आवश्यकताओं, एवं प्राथमिकताओं का सही तरह से कभी आकलन नहीं किया गया जिससे गलत नीतियों एवं कार्यक्रमों का सृजन होता है जो कि महिलाओं के लिए ज्यादा लाभकारी नहीं हो पाता है। यहाँ की कृषि अभी भी परम्परागत कृषि विधियों से त्रस्त है। किसान विशेषकर पुस्तैनी विधियों एवं उपकरणों का व्यवहार करते हैं। झारखण्ड, विहार, उड़ीसा एवं बंगाल की 1 प्रतिशत कृषक महिलाओं के पास नवीन तकनीकों की जानकारी नही है। यहाँ की कृषि जटिल,विविध एवं जोखिमपूर्ण है। कृषि मानसून पर निर्भर करती है। एक फसली प्रणाली हाने के कारण बेकारी एवं रोजगारी की समस्या बहुत है। प्रछन्न रोजगारी का आकार बहुत बड़ा है। महिलाओं की करीब 95 प्रतिशत जनसंख्या मौसमी बेरोजगारी से ग्रस्त है। कुछ इलाकों जहाँ पानी की सुविधा है, जैसे राँची गुमला आदि जगहों में सब्जियों का उत्पादन बहुत अच्छा होता है, यहाँ से सब्जियाँ राँची, जमशेदपुर, कलकत्ता, दिल्ली आदि नगरों एवं महानगरों में भेजी जाती है। किन्तु बाजार अव्यवस्थित होने के कारण सारा मुनाफा बिचौलिए खा जाते हैं। कृषक महिलाएँ दबाव में आकर भी सस्ते दामों में अपने कृषि उत्पादों को बेच देती हैं। ‘‘ कोल्ड स्टोरेज ‘‘ के आभाव के कारण किसान मुनाफा नहीं कमा पाते है। अन्य समस्या सही समय पर सही बीजों का आभाव है, जिसका कुप्रभाव उत्पादन पर पड़ता है।

महिला कृषि

कृषि सम्बन्धी समस्याओं का निदान एवं उपाय :-                         
कृषक महिला विकास के मुख्य आयाम हो सकते है - लाभकारी रोजगार के अवसर, शिक्षा एवं प्रशिक्षा स्वास्थ्य सामाजिक एवं राजनैतिक भागीदारी एवं कानूनी साक्षारता 1 कृषि क्षेत्र में महिलाओं के लिए उत्तम आय के साधन हो सकते हैं - सब्जी उत्पादन, फूलों एवं औषधीय पौधों की खेती, मशरूम की खेती, लाख की खेती आदि। इसके द्वारा महिलाओं के लिए आर्थिक एवं सामाजिक रूप से लाभकारी पाया गया है। इसमें आय के साथ-साथ रोजगार के अतिरिक्त दिनों में भी वृद्धि हुर्इ है। झारखण्ड में जनजातीय कृषक महिलाओं की साक्षरता दर 15: है जो बहुत कम है। शिक्षा के अभाव में कृषि प्रसार तंत्रों एवं प्रशिक्षण कार्यों से दूर हो जाती है या इसका भरपूर लाभ नहीं उठा सकती है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि कृषि सम्बन्धित प्रशिक्षण कार्यो में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्‍चित किया जाय। साथ ही साथ व्यावसायिक शिक्षा, वयस्क शिक्षा, रात्री पाठशाला आदि कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए। महिलाओं की सामाजिक एवं राजनैतिक भागीदारी के लिए पुरूषों को सुग्राही एवं महिलाओं को जागृत होना होगा ताकि महिला कृषक के हित में कानून बनाएं जा सकें।

महिला कृषि

निष्कर्ष :-
इस संदर्भ में मैं कहना चाहूँगी कि झारखण्ड के किसानों विशेषकर महिलाओं को निर्णायक भ्ाूमिका निभानी होगी। पारिवारिक निर्णयों में महिलाओं की सहभागिता का दर पुरूषों की तुलना में कम पायी गयी है। लगभग एक-तिहार्इ निर्णय ही पुरूष एवं महिलाएँ मिलकर लेते पाए गए। बाकी दो तिहार्इ निर्णयों मेेें पुरूषोंे द्वारा सम्पादित होते है तथा महिलाओं को कम महत्व वाले कार्य दिए जाते हैं। पशुपालन एवं फसल उत्पादन में महिलाओं का योगदान पुरूषों से लगभग बराबार समाज मे अपना सहयोग देती है।  
संदर्भ ग्रंर्थ :-
1. साभार, डॉ. बारा निभा, औरत, (लेखिका बिरसा कृषि विश्‍वविधालय राँची के प्रसार शिक्षा विभाग से सम्बन्ध हैं ) (राष्ट्रीय महिला आयोग के प्रतिवेदन, 2003 में उद्धृत) पेज न.- 135,136
2. साभार, डॉ. सिंह ‘रतन‘ आर. पी., औरत (राष्ट्रीय महिला आयोग के प्रतिवेदन 2003 में उद्धृत ) पेज न. 139, 142 
3. प्रभात खबर, राँची बुधवार 13 अगस्त, 2014 www.Prabhathkhabar.com  
4. प्रभात खबर, राँची सोमवार 18 अगस्त, 2014 www.Prabhathkhabar.com
5. डॉ भगत नारायण, छोटानागपुर के उराँव रीति-रिवाज पेज न. 293, प्रथम संस्करण 2013 प्रकाशक - झारखण्ड झरोखा
6. www.gumla nic.in   सिसर्इ प्रखण्ड बी.पी.एल. परिवारों की संख्या 2002-2007
7. शिवनाथपुर पंचायत की मुखिया श्रीमति फ्लोरेंस लकड़ा से वार्ता।
8. Self- learning material booklet, IBPS common written examination for regional rural banks, mahendra educational pvt.ltd. page no- 70  

- डॉ (श्रीमती) बैजयन्ती उराँव

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