KurukhTimes.com

कुँडुख भाषा की लिपि : तोलोंग सिकि

कुँडुख भाषा की लिपि : तोलोंग सिकि तोलोंग सिकि एक लिपि है। यह लिपि, भारतीय आदिवासी आंदोलन तथा झारखण्ड का छात्र आंदोलन की देन है। इस लिपि को आदिवासी कुंडुख (उराँव) समाज ने अपनी भाषा की लिपि के रूप में स्वीकार किया और पठन-पाठन में शामिल कर लिया है। इस लिपि के प्रारूपण में मध्य भारत के मुख्य आदिवासी भाषाओं की ध्वनियों को आधार माना गया है। लिपि चिह्नों के संकलन हेतु हल चलाते समय बनी हुई आकृतियाँ, परम्परागत पोशाक तोलोंग को कमर में पहनने से बनी आकृतियाँ, पूजा अनुश्ठान में खींची गयी आकृतियाँ, डण्डा कट्टना पूजा अनुश्ठान चिह्न तथा दीवारों में बनायी जाने वाली आकृतियाँ एवं खेल-खेल में खींची जाने वाली रेखाएँ, लिपि चिह्न का मुख्य आधार है। साथ ही आधुनिक तकनीक में खरा उतरने हेतु गणितीय चिह्न जोड़, E टाव, गुणा, भाग, वृत, आयत, वर्ग आदि को भी आधार माना गया है। तोलोङ एक प्रकार का मर्दाना पोशाक है, जिसे कमर में लपेट-लपेट कर पहना जाता है। यह तोलोंग शब्द कुंडूख, मुण्डा, खड़िया, हो, संताली आदि सभी भाषाओं में उभयनिश्ट है। सिकि का अर्थ लिपि है। इस प्रकार तोलोंग सिकि का अर्थ तोलोंग लिपि है।

कुँडुख भाषा के लिए नई लिपि की आवश्यकता क्यों ?

भाषा वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी भी भाषा के दो विकसित रूप हैं :
(1) Verbal Speech या कान की भाषा। (2) Visual Speech या आँख की भाषा।
कान की भाषा प्रकृति प्रदत है तथा यह परिवर्तनशील है। आँख की भाषा सभ्यता की देन है तथा यह किसी भी माशा को स्थिरता प्रदान करता है। वैज्ञानिकों का मानना है स्थिर स्वरूप के बिना बोली का स्थायित्व नहीं होता है। स्थिरता प्रदान करने वाला रूप ही आँख की भाषा है। अतएव आँख की भाषा अर्थात लिपि चिहन का विकास किया जाना आवश्यक है। जिस किसी समाज ने ऑख की भाषा को अपनाया, वह वर्तमान समाज में अगली पंक्ति पर खड़ा है।
कुंडूख भाषा के पास अबतक सिर्फ प्रथम स्वरूप है. जिसके चलते यह माशा अपनी परिवर्तनशील प्रकृति के अनुसार ही गतिशील है। अर्थात यदि इसे स्थिरता प्रदान करने का उपाय नहीं किया गया तो यह अपनी प्राकृतिक मौत की ओर अनायास ही बढ़ती चली जायेगी। अतः जबतक माशा को स्थिरता प्रदान करने वाला रूप यानि लिपि नहीं दिया जायेगा तबतक इसे बचा पाने में कठिनाई होगी।
तोलोङ सिकि (लिपि) ही क्यों ?
उपलब्म कुंडुख साहित्यों के अवलोकन से पता चलता है कि पूर्व में ईसाई मि"निरियों ने कुँडुख भाषा के लिए सर्वप्रथम रोमन लिपि का व्यवहार किया। उसके बाद देवनागरी लिपि का व्यवहार किया जाने लगा। वर्तमान में महाविद्यालों में कुंडुख भाषा का पठन-पाठन देवनागरी लिपि के माध्यम से हो रहा है। इस परिस्थिति में एक नई लिपि तोलोङ सिकि को स्वीकार करने की बात जनमानस को कचोटती है कि – एक नई लिपि की शुरूआत क्यों की जाय ? इस समस्या का समाधान, निम्न प्रश्नों के उत्तर में निहीत है। हम सभी स्वयं से प्रश्न करें :(1) क्या, उपरोक्त लिपियाँ (रोमन एवं देवनागरी) कुंडुख माशा के लिए उपयुक्त हैं ? (2) क्या, ये दोनों लिपियाँ कुँडुख भाषा की सभी ध्वनियों को प्रतिनिधित्व करती हैं ?
(3) क्या, ये दोनों लिपियाँ कुँडुख माशा की प्रकृति की मूलता को बरकरार रख पाएंगी?
(4) क्या, उपरोक्त लिपियाँ कुडुख समाज एवं संस्कृति हो प्रतिविम्बित करती हैं ?
(5) क्या, उपरोक्त लिपियों से कुंडुख माशा एवं समाज को भूमण्डलीकरण का दबाव एवं आदिवासी समाज के चारों तरफ का revers force के दबाव से बचाया जा सकेगा?

इन सभी प्रश्नों का उत्तर है - नहीं। यदि इन प्रश्नों का उत्तर उपरोक्त लिपियाँ नहीं है, तो सही उत्तर क्या है ? इन सभी प्रश्नों का सही उत्तर है - "तोलोङ सिकि"।

तोलोङ सिकि का आधार कुंडूख माशा, संस्कृति, रीति-रिवाज एवं मान्यता है। इसमें कुंडुख भाषा की सभी मूल ध्वनियों के लिए ध्वनि चिहन (लिपि चिह्न) है। यह कुंडूख माशा की प्रकृति की मूलता को बरकरार रखने में सक्षम है। यह भूमण्डलीकरण के कुप्रभाव से बचने के लिए प्रतिरोधक का कार्य कर सकता है। साथ ही यह भूमण्डलीकरण के दबाव के बीच कुंडुख सभ्यता, संस्कृति को दूसरे बड़े समुदाय के बीच नेत्रग्राह्य बनाएगा। इतिहास की ओर मुड़कर देखने से पता चलता है कि रोमन लिपि का इतिहास रोमन सभ्यता से है तथा देवनागरी लिपि का इतिहास वैदिक सभ्यता से। दुनियाँ के माशाविद तथा इतिहासकार, कुँडुख भाषा तथा समूह को उतरी द्रविड़ भाषा समूह की श्रेणी में रखते हैं। इस प्रकार इन दोनों में कुंडुख सभ्यता अथवा आदिवासी सभ्यता की झलक लेश मात्र भी नहीं है। अतएव वर्तमान में रोजगार एवं तकनीकी शिक्षा हेतु हिन्दी एवं अंग्रेजी को अपनाया जाना आवश्यक है तथा अपनी माशा-संस्कृति को बरकरार रखने के लिए अपनी मातृभाषा को पठन-पाठन का आधार बनाकर आगे बढ़ना भी आवश्यक है।

इन तीनों के लिए राश्ट्रीय शिक्षा नीति मे त्रिमाशा फार्मूला को स्थान दिया गया है। झारखण्ड सरकार में भी यह फार्मूला लागू है। अब बारी समाज की है कि - हम, आगे कैसे बढ़ें।

विशेषताएँ : (1) "तोलोङ सिकि या तोलोङ लिपि." कुंडुख समाज एवं कुंडुख संस्कृति को आधार मानकर विकसित हुई है। इसलिए इस लिपि के वर्णमाला का आरंभिक तथा अधिकतर वर्णाक्षर घड़ी की विपरित दिशा (anticlockwise direction) में स्थापित हैं क्योंकि परम्परागत आदिवासी समाज में जन्म से मृत्यु तक का अनुश्ठान वर्तमान घड़ी की विपरित दिशा में सम्पन्न किये जाते हैं।
(2) इस लिपि का वर्णमाला का निर्धारण, अंतर्राश्ट्रीय ध्वनि विज्ञान में बतलाये गये दिशा निर्देश के अनुसार किया गया है। भाषा विज्ञान के अनुसार बच्चों को सिखलाने के लिए आसान से कठिन की ओर बढ़ना चाहिए. इसलिए वर्णमाला में स्वर वर्ण का आरंभ इ से आरंभ कर आ से अंत किया गया है। इसी तरह व्यंजन में प से आरंभ कर ढ़ से अंत किया गया है। कुंडुख भाशी क्षेत्र में अभी भी छोटे बच्चे को पपा, बबा, ममा आदि शब्दों के साथ माशा सिखलाया जाता है।
(3) कुंडूख भाषा के बोलचाल में लगभग 72 ध्वनियों का व्यवहार होता है। जिसे 41 मुख्य लिपि चिह्न एवं 6 सहायक चिह्न के योग से लिखा जा सकता है। इनमें से 36 व्यंजन ध्वनि (35 मूल व्यंजन तथा 1 व्यंजन अ ध्वनि) एवं 36 (मूल एवं संयुक्त) स्वर ध्वनि है।
(4) इसे जनजातीय एवं क्षेत्रीय माशा विभाग राँची, विश्वविद्यालय रॉची के प्राध्यापकों खाशकर (भाषाविद डॉ० रामदयाल मुण्डा) का मार्ग दर्शन प्राप्त है।
(5) इसे झारखण्ड जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, राँची के विद्वतजनों का मार्ग दर्शन प्राप्त है।
(6) इस लिपि का कम्प्यूटरीकरण हो चुका है तथा सॉफ्टवेयर, इन्टरनेट में उपलब्ध है। सॉफ्टवेयर डिजाएनर श्री किसलय जी ने वर्श 2002 में Kellytolong Font के नाम से कम्प्यूटर वर्जन विकसित हुआ तथा वर्श 2020 में अद्यतन रूप प्रकाशित किया गया है. जो आदिवासी समाज तथा पूरे मानव समाज को निःशुल्क समर्पित है। इसे www.kurukhtimes.com अथवा www.tolongsiki.comसे डाउनलोड किया जा सकता है।
(7) इसे झारखण्ड के कुंडुख लोग, कुडुख माशा की लिपि के रूप स्वीकार किया है तथा वर्श 1999 से ही गैर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई किया जाता रहा है।
(8) इसे झारखण्ड सरकार ने सितम्बर 2003 में कुंडुख माशा में मान्यता देते हुए केन्द्र सरकार, नई दिल्ली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने हेतु भेजा जा चुका है।
(9) इस नई लिपि से मैट्रिक परीक्षा में परीक्षा लिखने के लिए झारखण्ड अधिविध परिद, राँची द्वारा 19 फरवरी 2009 को एक स्कूल को मान्यता प्राप्त हुआ।
(10) इसे झारखण्ड सरकार युवा, संस्क ति एवं खेल मंत्रालय की ओर से 28 अक्टूबर 2011 को "तोलोंग सिकि" लिपि के अनुसंधान हेतु डॉ० नारायण उराँव सैन्दा को सांस्कृतिक सम्मान - 2011 प्रदान किया गया है।
(11) दिनांक 30.11.2015. दिन सोमवार को जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, राँची विश्वविद्य लय, राँची के सभागार में विशप डॉ. निर्मल मिंज की अध्यक्षता में कुँडुख भाषा पारिमाशिक शब्दावली शब्द भण्डार का लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ। समारोह में डॉ. के. सी. दूडू, डॉ. हरि उराँव, डॉ. (श्रीमती) उशा रानी मिंज डॉ. फ्रांसिस्का कुजूर, डॉ. एच. एन. सिंह, डॉ. नारायण भगत, डॉ. रामकिशोर भगत, डॉ. नारायण उराँव 'सैन्दा', फा. अगस्तीन केरकेट्टा, श्री अशोक बाखला, श्री जिता उराँव श्री सरन उराँव, श्री बन्दे उराँव, श्री तेतरू उराँव एवं जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के बहुत सारे छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे। उपस्थित सभी भाषा विशेशज्ञों एवं शिक्षाविदों ने पारिभाशिक शब्दावली (तीन लिपि - देवनागरी लिपि, रोमन लिपि एवं तोलोंग सिकि में लोकार्पित) के गुण-दोशों एवं आनेवाली पीढ़ी के लिए इसकी आवश्यकता आदि तथ्यों पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए जन साधारण के व्यवहार के लिए कुंड्ख माशा पारिभाशिक शब्दावली शब्द भण्डार को लोकार्पित किया गया।
(12) झारखण्ड अधिविध परिषद, राँची के अधिसूचना संख्या - JAC/गुमला/16095/ 12-0607/16 दिनांक 12.02.2016 द्वारा वर्श 2016 से मैट्रिक परीक्षा में कुंडूख भाषा पत्र को तोलोङ सिकि (लिपि) में परीक्षा लिखने की अनुमति दी गई है।
(13) दिनांक 29 मई 2016, दिन रविवार को कुंख (उराँव) भाषा के विकास हेतु कुंडुख माशी बुद्धिजीवियों द्वारा तोलोङ सिकि कुंडुख (उराँव) भाषा टेक्स्टबुक कमिटि. झारखण्ड का गठन किया गया। बैठक में, सभी संबंधित विशयों पर गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए टेक्स्टबुक कमिटि के प्रस्ताव को अनुमोदित एवं स्वीकृत किया गया तथा कार्यकारिणी कमिटि का गठन किया गया।
(14) वर्ष 2016 की मैट्रिक परीक्षा में कुंडुख विशय को तोलोङ सिकि (लिपि) में लिखने की अनुमति मिलने पर दो उच्च विद्यालय के छात्रों ने तोलोङ सिकि में परीक्षा लिखी और वे पास हुए।
(15) राँची विश्वविद्यालय, राँची के अधिसूचना संख्या - B/1236/16 दिनांक 26.09.2016 द्वारा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष के देखरेख में एक विशेश सेल का गठन हुआ है, जो संताली भाषा की लिपि - ओल चिकि, हो भाषा की लिपि - वराङ चिति तथा कुंडूख (उराँव) भाषा की लिपि - तोलोङ सिकि में पाठ्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करेगी।
(16) दिनांक - 21 फरवरी 2017 दिन मंगलवार को अंतराश्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर माननीय मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में कुंडुख माशा एवं तोलोङ सिकि, लिपि को आधिकारिक तौर पर सरकारी कामकाज की भाषा का दर्जा दिये जाने की घोशणा कर दुनियाँ के लगभग 50 लाख कुँडुख (उराँव) लोगों के माशायी एवं सांस्कृतिक धरोहर को संजोने में अभूतपूर्व फैसला लिया है। कुंडुख भाशियों ने, आदिवसियों के हित में किये गये फैसले का स्वागत किया और सरकार के कार्य को धन्यवाद ज्ञापित किया।
(17) दिनांक 17 मार्च 2018 को तोलोङ सिकि पर बनी डॉक्यूमेंटरी फिल्म लकीरें बोलती हैं! का लोकार्पण। इस डॉक्यूमेंटरी फिल्म के निदेशक श्री किसलय जी हैं तथा परिकल्पना डॉ० नारायण उराँव 'सैन्दा' का है।
(18) प. बंगाल सरकार में 01 जून 2018 से कुंडुख भाषा को राज्य का आठवाँ official language का दर्जा प्राप्त है। दिनांक 08 फरवरी 2018 को पश्चिम बंगाल सरकार ने पश्चिम बंगाल माशा अधिनियम, बिल पास कर दिया, जिसके अनुसार राज्य में आधिकारिक तौर पर बंगला, उर्दू, ओड़िया, हिन्दी, नेपाली, संताली, पंजाबी के साथ कुँडुख भाषा एवं तोलोङ सिकि (लिपि) को आधिकारिक दर्जा दिये जाने की घोशणा कर दुनियाँ के लगभग 50 लाख कुँडुख (उराँव) लोगों के भाषायी एवं सांस्कृतिक धरोहर को संजोने में अभूतपूर्व फैसला लिया है।
(19) दिनांक 28 दिसम्बर 2018 को तोलोङ सिकि पर बनी मोबाईल एप्प का लोकार्पण हुआ। (20) दिनांक 21.02.2019 दिन गुरूवार को, अद्दी अखड़ा (संस्था) के संयोजन में आधुनिक कुंडुख व्याकरण नामक पुस्तक का लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ। सांसद, श्री समीर उराँव ने पुस्तक की समीक्षा की। इस पुस्तक के लेखक डॉ० नारायण भगत एवं डॉ0 नारायण उराँव सैन्दा है।

शोध एवं अनुषंधान:
डॉ नारायण उरांव ‘सैन्दा'
एम जी एम मेडिकल कॉलेज
झारखंड 831001
मो. 9771163804

नारायण उरावं

- डॉ नारायण उराँव सैन्दा
 

 

Sections