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कुँड़ुख़ (उराँव) सामाजिक परम्परा में धर्म का अर्थ ?

विगत दो दशक से परम्रागत आदिवासी समाज आत्मोत्थान के दौर से गुजर रहा है। झारखण्ड आन्दोलन से लेकर अबतक सामाजिक एवं धार्मिक जागरण के नामपर अनेकानेक विचार-गोश्ठी एवं रैलियाँ आयोजित की गर्इ। लोग इन विचार गोश्ठियों में आते और चले जाते। धीरे-धीरे अब ये धुंंध के बादल छंटने लगे हैं। गांव के बुर्जुग, शिक्षाविद, धर्म के जानकार आदि इन गुत्थियों को सुलझाने में अपनी ज्ञान उर्जा का उपयोग कर रहे हैं। कर्इ लोग, अपने एवं अपनों के बीच प्रतिदिन उठ रहे सवालों के जबाब ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर माथा-पच्ची कर रहे हैं। छोटानागपुर के पठार से लेकर असम के चाय बगान तक उठ रहे सामाजिक एवं धार्मिक उलझावपन के उधेड़बुन की कड़ी में दिनांक 15.11.2010 को प0 बंगाल बालुरघाट से श्री बन्धन उराँव, दिनांक 14.01.2011 को भरनो, गुमला से श्री अरविन्द उराँव दिनांक 07.08.2012 को सोनितपुर एवं असम से श्री सुरेश उराँव आदि जिज्ञासुओं द्वारा भेजे गए प्रश्‍नों के उत्तर ढूढ़ने के लिए कर्इ अलग-अलग लोगों तक पहुँचकर उन प्रश्‍नों का उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास किया गया है। इन प्रश्‍नों का उत्तर ‘‘अद्दी कुँड़ुख़ चा:ला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा’’ नामक संस्था के सदस्यों के संयुक्त प्रयास से श्री विनोद भगत, राँची, श्री जयराम उराँव, भरनो गुमला, श्री जिता उराँव, राँची, डॉ. श्रीमती ज्योति टोप्पो, राँची, श्री मंगरा उराँव, न्यू एरिया, मोरहाबादी, राँची एवं श्री विनोद भगत, हिरही, लोहरदगा आदि के साथ विचार-विमर्श के पश्‍चात् संग्रहित उत्तर को आप सबों तक पहुँचाया जा रहा है। प्रश्‍न एवं उत्तर इस प्रकार है -         
प्रश्‍न 1. :- उराँव सामाजिक परम्परा एवं अवधारणा में धर्म का शाब्दिक अर्थ, क्या है घ्  
उत्तर :- धरम बक्क, धरमे (र्इश्‍वर) बक्क ती मंज्जकी रअ़र्इ। धरमे अरा धरम ही पइत्त नु कँुड़ुख़ कत्था नु एन्ने बुझुरतार’र्इ - एका सवंग संवसेन धर’र्इ आ:दिम धरमे अरा एका सवंग धरना जो:गे रअ़र्इ, आ:दिम धरमे दरा धरमे ही धरताचका दिम धरम तली। (हिन्दी में इसे इस तरह समझा जाता है :- धर्म शब्द की व्युत्पित्ति धरमे यानि र्इश्‍वर शब्द से हुर्इ है। कँुड़ुख़ भाशा में र्इश्‍वर को धरमे कहा जाता है। र्इश्‍वर एवं धर्म के बारे में कुँड़ुख़ समाज की अवधारणा इस प्रकार है - जो शक्ति सम्पूर्ण सृश्टि को पकड़े हुए है वही र्इश्‍वर हैै एवं जो शक्ति अनुकरण एवं अनुशरण करने योग्य है वही र्इश्‍वर है। इसी तरह र्इश्‍वर के द्वारा पकड़व़ाया गया एवं अनुकरण करवाया गया नीति-नियम ही धर्म है।) अंगरेजी में धर्म को Religion जाता है। अंगरेजी का Religion शब्द Latin भाशा के religio षब्द से बना है जिसका अर्थ obligation, bond आदि होता है। अंगरेजी षब्दकोश में Religion शब्द का अर्थ इस प्रकार है :- 1. The belief in a superhuman controlling power, esp. in a personal God or Gods entitled to obedience and worship. 2. A particular system of faith and worship. (D.K. Illustrated Oxford Dictionary, p-694). इस प्रकार प्रमाणित होता है कि संस्कृत जैसी ही प्राचीन भाशा लैटिन और इंगलिश तथा प्राचीन भारतीय आदिवासी भाशा कुँड़ुख़ में र्इश्‍वर की अवधारना लगभग एक जैसी है। वैसे साहित्य के अभाव में आदिवासियों की परम्परा, विश्‍वास एवं आदिकालीन धर्म को भले ही लोग अविकसित एवं अपरिभाशित कहकर उपेक्षा करें किन्तु अंगरेजी समझने वाले, प्राचीन परम्पारिक कुँड़ुख़ (उराँव) समाज की र्इश्‍वर की अवधारना को अब गौन नहीं करेंगे। आज भी सरहुल के दिन सरना स्थल में सर्वप्रथम सर्वशक्तिमान र्इश्‍वर के नाम से ही पूजा-अराधना की जाती है, उसके बाद ही दूसरे देव या देबी की पूजा होती है। इसी तरह कुँड़ुख परम्परा में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति की आत्मा को ए:ख़ मंक्खना (छाया भितराना) नेग कर अपने घर में स्थान दिया जाता है और गुहार लगाया जाता है कि वे उनके परिवार का देखभाल करते रहें। उराँव लोगों की अवधारना है कि परमात्मा र्इश्‍वर एवं पूर्वज, उनको तथा उनके कार्यों को देखते रहते हैं और उनको स्वप्न के माध्यम से रास्ता दिखलाते हैं। इसी अवधारना के चलते एक सच्चा उराँव आदिवासी झूठ, चोरी या बेर्इमानी करने से डरता है। 
प्रश्‍न 2. :- आस्था-विश्‍वास के साथ धर्म का क्या संबंध है ?             
उत्तर :- आस्था-विश्‍वास के साथ धरम का अटूट संबंध है। आस्था-विश्‍वास ही धर्म का आधार है। यदि आप विश्‍वास करेंगे कि र्इश्‍वर है तभी धर्म पर आस्था जगेगी। र्इश्‍वर पर विश्‍वास किये बिना धर्म की व्याख्या नहीं की जा सकती है।        
प्रश्‍न 3. :- अलौकिकता के वगैर धर्म हो सकता है या नहीं ?         
उत्तर :- र्इश्‍वर पर विश्‍वास करना, अलौकिकता (जो लोक में न दिखता हो, असाधारण हो) को समझने की पहली सीढ़ी है। र्इश्‍वर पर आस्था-विश्‍वास के वगैर, र्इश्‍वर की अलौकिकता को समझना कठिन है। यह चराचर जगत अपनी गति में निरंतर गतिमान है, यही अलौकिकता है। हमारे पुरखे इन्हीं तथ्यों को समझकर अपने पूजा-अनुष्ठान में इस अलौकिकता के बने रहने अथवा चलते रहने के लिए र्इश्‍वर एवं र्इश्‍वरीय शक्तियों से प्रार्थना-विनती करते रहे हैं। जीवन में कर्इ ऐसी घटनाएँ घटतीं हैं, जिसके कारणों को हम समझ नहीं पाते हैं सिर्फ वह घटना हमारी अनुभ्ाूति में रहती है। र्इश्‍वरीय संदेश, किस रूप में, कब और किसे मिल जाए, इसे कोर्इ नहीं जानता है। यदि वह बतलाया जाता है तो वह लौकिक होगा, अलौकिक नहीं।         
प्रश्‍न 4. :- पूजा-पाठ से धर्म का क्या संबंध है ?                 
उत्तर : पूजा-पाठ र्इश्‍वर भक्ति का अथवा र्इश्‍वर को याद करने का एक तरीका है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का प्रयास है। यह मानव को र्इश्‍वर से तथा मानव को मानव से जोड़ता है।                     
प्रश्‍न 5. :- धर्म की क्या जरूरत है ?                           
उत्तर :- धर्म, मानव को र्इश्‍वर से तथा मानव को मानव से जोड़ता है। एक मानव होकर दूसरे मानव से जुड़ने में धर्म एक सहारा है। अतएव समाज में बने रहने के लिए समाज द्वारा निर्धारित सामाजिक सिद्धांत ही धार्मिक सिद्धांत बन जाता है।    
प्रश्‍न 6. :- धर्म से क्या लाभ (प्रोफिट) हो सकता है ?                 
उत्तर :- मानव को मानव से जोड़ना तथा मानव का र्इश्‍वर से संबंध बनाये रखना, धर्म का मूल मंत्र है। अपने आत्मोत्थान के लिए, अपनी अंतरात्मा की आवाज पर अथवा र्इश्‍वर पर विश्‍वास करके कार्य कीजिए, रास्ता खुलने लगेगा। यह अलौकिकता भले ही इन लौकिक आँखों से नहीं दिखार्इ दे किन्तु आत्मिक शांति और सुख की अनुभ्ाूति होगी तथा आपकी कार्य-सिद्धि होती रहेगी।                 
प्रश्‍न 7. :- सरना आदिवासी धर्म का नाम पूजा स्थल के नाम पर क्यों ? सरना आदिवासी धर्म का अर्थ क्या है ?                              
उत्तर :- सरना शब्द आदिवासी भाशाओं में समाहित है। नलख सरना क्रिया शब्द का अर्थ विध्न बाधाओं के बीच किसी कार्य का नियत समय में सम्पन्न होना होता है। इस चराचर जगत में सिर्फ प्रकृति ही निरंतर अपनी गति में गतिमान है। प्रकृति का अपनी गति में गतिमान होना ही अलौकिकता है। प्रकृति का परम तत्व जिसे पंच्च तत्व भी कहा जाता है अर्थात ख़े:ख़ेल, मेरख़ा, ता:का, चिच्च, चेंप (धरती, आकाश, हवा, अग्नि, पानी) के सम्मिलन से पूरी सृष्टि की रचना होती है, यह अलौकिक प्राकृतिक सत्य है। हमारे पुरखे इन्हीं तथ्यों को समझकर अपने पूजा-अनुष्ठान में इस अलौकिकता के बने रहने अथवा चलते रहने के लिए र्इश्‍वर एवं र्इश्‍वरीय षक्तियों (धरमे अरा धरमी सवंग) से प्रार्थना करते हैं। सरना स्थल में गाँव के पहान द्वारा गाँव सीमा के अन्दर मनुष्य, जानवर, कीड़ा, पतिंगा, पेड़-पौधे आदि सभी जीव-जन्तुओं के सतत जीवन चलते रहने के लिए र्इश्‍वर एवं र्इश्‍वरीय षक्तियों से प्रार्थना करता है। इस तरह सरना एक जीवन पद्धति है और इसी जीवन पद्धति के नाम पर धर्म का नाम होना भी एक अलौकिकता है। इसे आत्मसात करना आध्यात्मिक जीवन पद्धति को सरना पूजा स्थल पर हो रहे पूजा-अनुष्ठान को देख-समझकर ही समझा जा सकता हैं। इसे दूसरे समुदाय की व्यवस्था से तुलना करके समझा नहीं जा सकता है। सरना षब्द को स+र+न+आ की तरह अलग-अलग करके उस रहस्य तक पहुँचा जा सकता है, जिसकी व्याख्या इस प्रकार है - सिरजनन रम्फ ननु आ:लोन सा:रना (to feel & realised to creater,  सृश्टिकर्ता षक्ति को आत्मसात करना अथवा महसूस करनाद्ध दिम सरना मलता सरनन सा:रना दिम सरना बि’र्इ। सा:रना का अर्थ महशूस करना या आत्मसात करना या धारण करना होता है। इस तरह सम्पूर्ण सृष्टि को प्रकाषित एवं संचालित करने वाले धरमे अरा धरमी सवंग (र्इश्‍वर एवं र्इश्‍वरीय षक्तियाँ) को महषूस कर आत्मसात करना ही, सरना आदिवासी धर्म की महागाथा है। आदिवासी भाशा में सरना का अर्थ खोजना भी होता है। सरना स्थल में पूजा अनुश्ठान करते समय देव-पितरों को खोेजने अथवा याद करने कार्य सम्पन्न होता है।  इस प्रकार सरना, सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं बल्कि परम्परागत आदिवासी जीवन पद्धति है।            
उपरोक्त प्रश्‍नोत्तर, आधुनिक युवा पीढ़ी को भले ही अटपटा लगे किन्तु प्रौढ़ावस्था में यही सवाल-जबाब आत्मोत्थान के रास्ते तैयार करेंगे। वर्तमान समय में, गाँव एवं षहर के बीच तथा अनपढ़ एवं पढ़ालिखा वर्ग के बीच दिनों-दिन एक गहरी खार्इ बनती जा रही है। इस दूरी को इन्हीं सवाल-जबाब के माध्यम से कम किया जा सकेगा।      

(शोध एवं संकलन : डॉ0 नारायण उराँव एवं श्री गजेन्द्र उराँव, सैन्दा, सिसर्इ गुमला, झारखण्ड)

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