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आधुनिक कुँड़ुख़ व्याकरण: एक पुस्तक परिचर्चा

कुँडु़ख़ कत्था, द्रविड़ भखा खन्दहा ता ओण्टा अद्दी कत्था तली। ई कत्था गही ओःरे एका बेसे मंज्जा, का एकसन मंज्जा, का ने नंज्जा, का एका आःलर नंज्जर, इबड़ा मेनता (प्रश्न) गही थाह अक्कुन गूटी अरगी मना। पुरखर बाःचका रअ़नर - धरमे सवंग आःलारिन सिरजन-बिरजन नंज्जा अरा संग्गे-संग्गे आःलारिन कुँड़ुख़ कत्था हूँ सिखाबाःचा। बेड़ा सिरे आर, तमहँय ख़द्द-ख़र्रा रिन सिखाबाःचर। इबड़द एन्ने हुँ बाःतारई - नमहँय पुरखर, तमहँय पुरखर ती सिक्खरर अरा नमहँय पुरखर ही नें:ग-दस्तूर अरा लूर-घोःखन नाम सिखिरकत। एन्नेम हुल्लो परिया ती इबड़ा चलईन मन्नुम, अख़नुम, बुझुरनुम बरताःरआ लगी। ईन्नलता (आधुनिक) लूरगरियर हूँ बअ़नर - एका ख़द्दर, तंग्गियो-तम्मबर गही कछनखरना कत्थन अरा लूर-घोःखन साय चान गूटी (सात वर्षों तक) सिखिरओर आ ख़द्दर आ कछनखरना कत्थन तमहँय उज्जना गूटी मल मोःधोरओर। एन्ने घोख तिम इबड़ा कछनखरना कत्था, अयंग कत्था (मातृभाषा) बाःतार’ई। कुँड़ख़र गे कुँडु़ख़ कत्था, तंगआ अयंग कत्था तली। कुँड़ख़र गही अयंग कत्था हुल्लो परिया ती पुरखर गही जोगाबाचका दरा बछाबाचका सवंग तली। ईद, नमन सिरजन-बिरजन ननु धरमेस गही तिंग्गका अरा सँवराचका कत्था तली। 

MODERN KURUX GRAMMAR 


    अक्कु नाम धरमे अरा धरमी सवंग ही तिंग्गका-सँवराचका दरा नमहँय पुरखर गही अरजाचका अयंग कत्थन, अक्कुन ता बेड़ा सिरे गुनईन ननोत दरा इबड़न बुझुरना गही चिहुँट ननोत। इसन एन्ने गुनईन ननना नु तंगआ ती इन्दिर’ईम पुना घोख मल्ला चिताःरका, मुन्दा नमहँय पुरखर गही अरजाचका दरा आईन धरचकन, अक्कुन ता बेड़ा सिरे बुझुर-नखरना गही उरजिस ननताःरका रअ़ई। ई पुथि नु कुँड़ुख़ कत्था गही आईन एका बेसे रअ्ई अदिन बुझुरना गही चिहुँट ननतारकी बि‘ई। नाम चोअ़ते-ओक्कते तंगआ मुन्दहारे ता आःलर गने कछनखरदत। तंगआ घोःखन बई ती बअर तेंग्गदत। मिनुर, ब‘उर गही कत्थन मेनर तमहँय घोःखन तेंग्गनर। एन्नेम, कछनखरना मनतेम काःली। इबड़ा नुम अक्कु नाम तरपाँ:ती ती बुझुरनखरओत। पद्दा-ख़ेप्पा नु एड़पा-पल्ली ता आःलर तमहँय ख़द्द-ख़र्रर गने कछनखरनर:- 
* सोमरस मण्डी ओना लगदस।        - सोमरा खाना खा रहा है।
* मंगरी दुदही ओन्तआ लगी।        - मंगरी दूध पिला रही है।
* नीन लूरकुड़िया काःदय।            - तुम स्कूल जाते हो।
* नीम लूरकुड़िया काःदर।             - तुमलोग स्कूल जाते हो।
* सुकुरमुनी लूरकुड़िया केरा।           - सुकुरमुनी स्कूल गई।
* सुकरूस लूरकुड़िया केरस।         - सुकरू स्कूल गया।
* नेर्र, मंगरस गही डण्डा तुरू लवरा।     - साँप, मंगरा के डण्डे से मारा गया।
* बिरसस सुकरासिन बचताअ्दस।        - बिरसा, सुकरा को पढ़ाता है। 
* नरूवस उगता कमनुम रअ़दस।        - नरूवा, हल बना ही रहा है। 
* नीम नलख नननुम रहचकर।          - तुमलोग, काम कर ही रहे थे।          
* आर लूरकुड़िया नु बचनुम रओर।        - वे, स्कूल में पढ़ते ही रहेंगे। 
* अबड़र एड़पा बरतेम रहचर।         - वे घर आ ही रहे थे।  
* एःम एमनुम रहचकम।             - हमलोग, स्नान कर ही रहे थे। 
* एःम मण्डी ओना लगदम।         - हमलोग खाना खा रहे हैं।
* नीम मण्डी ओना लगदर।            - तुमलोग खाना खा रहे हो।
* ताम मण्डी ओनोर।              - वे खाना खाएंगे।
    इबड़ा बकपून गही बकपून गढ़न ही तंगआ मइनता रअ़ई। एकअम नन्ना कत्था ती नहड़ा (उधार) मल्ला होच्चका। अवंगे कुँड़ुख़ कत्था गही मरजाईद अरा अईनन बछाबअना दरा उइना गही दरकार रअ़ई। मइय्याँ टूड़का बकपूनन घोखोचका ती एन्ने लेखआ घोख बर‘ई:-  
1. कुँड़ुख़ कत्था अरा मइनता नु मून्द गोटंग सवंग गही ओहमा पाड़ताःर’ई - (क) धरमे सवंग (परमात्मा) (ख) धरती अयंग (प्रकृति) (ग) धरमी सवंग (धरमे की इच्छा शक्ति या शरीर रहित रूपधारी चैतन्य)। कुँड़ुख़र, कुँड़ुख़ कत्था नु धरमे सवंगन, धरमे बअ़नर। ई सवंग न मेत तली न मुक्का। ईद - सँवसेन सिरिज’उ-पोःस’उ सवंग तली। ई सवंग एका बारी, मेत आःल छाव नु दहदर मनी आ बारी आ सवंग धरमे ती धरमेस बाताःर’ई अरा आःदिम दःव ननु सवंग मलता देव सवंग हूँ बातार’ई। अन्नेम एका बारी आ सवंग मुक्क आःल छाव नु दहदर मनी आ बारी आ सवंग दःव ननु सवंग ती देवती सवंग हूँ बातार’ई। अवंगे आल खोंड़हा नु मेत छाव नु मया ननु धरमी सवंग, मया ननु देव ती मयहादेवमय्हदेव अरा मय्हदेवस बाताःरा। अन्नेम परबस्ती ननु (लालन-पालन करने वाली) धरमी सवंगन परबस्ती ननु अयंग ती परबईत बाताःरकी बि’ई। इबड़ा एँड़ो सवंग, धरमे सवंग दिम, धरमी सवंग छाव नु आल जियन पोःसचा-परदाःचा। इबड़ा सवंग, अयंग कूल ती कुन्दुरका मल्ली। अवंगे कुँड़ुख़ घोख नु बाःतार’ई - एका सवंग सँवसेन धर’ई (पकड़ना) - आदिम धरमे अरा एका सवंग धरना जोगे (अनुशरण करने योग्य) रअ़ई -आदिम धरमे। ई लेखा कुँड़ुख़ बूझ-घोख नु - धरमे सवंग गही तिंग्गका-एःदका दिम धरम बातार’ई। धरमे सवंग गे बाताःर’ई - धरमे दिम ननो अरा धरमे दिम नन्तओ। आ लेखेम - धरमेस दिम ननुस दरा धरमेस दिम नन’तुउस। एन्ने तिम, कुँड़ुख़ कत्थअईन नु, ननु-ननतु’उ ती ननुतु’उ ननतु (Nominative Case, कर्ता कारक ) अरा ननुता   (Subject, उदेश्य ) बक्क पिंजिरकी बि’ई। 
2.  कुँड़ुख़ कछनखरना मलता कुँड़ुख़ बकपुन नु नलख ननु मलता नलख ननतु‘उ संग्गे एन्देर नलख ननना का मनना रअ़ई आद बाःतार’ई। नन्ना कत्था ही कत्थअईन नु बकपुन बाःतारआ गे नलंग संगे नलख ननु का नलख ननतु’उ ही मनना अईन तली। कुँड़ुख़ कत्था नु हुँ आ लेखअम अईन रअ़ई। अवंगे बकपुन बआ गे - ननुता (Subject, उदेश्य ) अरा अदी संग्गे नलङ (क्रिया) गही दरकार मनी दिम। नलख ननु मलता नलख ननतु‘उ, हिन्दी नु उदेश्य अरा अंगरेजी नु Subject बाःतार’ई।
3.  कुँड़ुख़ बकपुन नु नलख ननु मलता नलख ननतु‘उ, ननुतु’उ (Nominative, कर्ता) बातार’ई। हिन्दी ही 
उदेश्य मलता अंगरेजी ही Subject अरा अंगरेजी ही Nominative ओण्टेम तली। कत्थअईन नु ननु-ननतु‘उ अरा ननुतु’उ एँ:ड़ोद ओण्टे कत्था नुम तिंग्गी। ननुता ही अड्डा नु पिंज्ज्का मलता उइजीपिंज्जका एँ:ड़ो दिम ओक्का उंग्गी। नमूद - सोमरस मण्डी ओना लगदस। आद दुदही ओनतआ लगी। इबड़ा बकपुन नु सोमरस अरा आद ननुता (उदेश्य) ही अड्डा नु बरचकी रअ़ई एन्देरगे का ने मण्डी ओना लगी, बाचका ती मेंजख़ा (उत्तर) ख़खर’ई - सोमरस मण्डी ओना लगदस। अन्नेम - ने दुहही ओन्तआ लगी, बाचका ती मेंजख़ा ख़खर’ई - आद दुदही ओन्तआ लगी। इबड़ा बकपुन नु - मंगरस अरा आद, मेंजख़ा ख़खरना अड्डा नु बरचकी रअ़ई। अवंगे इसन एँ:ड़ो बक्क ननुता तली।
4.  कुँड़ुख़ कत्था नु ननुता (Subject, उदेश्य) गही छाव एका बेसे बर‘ई, आ बेसेम नलङ गही छाव हुँ संग्गे मनी। बअ़ना गे - बकपुन नु पिंज्जका मलता उइजीपिंज्जका एका छाव नु बर’ई, आ लेखेम नलंग गही छाव हुँ बर‘ई। नमूद - सुकुरमुनी लूरकुड़िया केरा। इसन सुकुरमुनी कुकोय तली, अवंगे सुकुरमुनी गने काःना नलंग गही मुक्क मेःद छाव ‘‘केरा‘‘ उक्कया। अन्नेम ‘‘सुकरूस लूरकुड़िया केरस‘‘ बकपून नु सुकरू नाःमे ही आःलस गने, काःना नलंग ही मेःत मेःद छाव ‘‘केरस‘‘ बरचा। उइजीपिंज्जका गने हुँ अदी लेखअम नलंग गही छाव बदलार‘ई। नमूद गे - नीन लूरकुड़िया काःदय। नीम लूरकुड़िया काःदर। इसन, नीन गने काःदय अरा नीम गने काःदर नलंग छाव जोःड़ोरकी बि’ई। 
5.  कुँड़ुख़ नु आःलर मजही कछनखरओ बाःरी मुक्कर, मेःतर गने मेःत मेःद छाव नु कछनखरनर, मुन्दा मुक्का-मुक्का रअ्नर होले मुक्क मेःद छाव नु कछनखरनर। नमूद गे - मेःतर बरआ लगनर। (मेःत-मुक्का मजही नु कछनखरना)। मेःतय बरआ लगनय। (मुक्का-मुक्का मझी नु कछनखरना)। एन्ने बिहईत (विशेषता) नन्ना कत्था नु मल ख़खर‘ई। 
6.  कुँड़ुख़ कत्था नु मुक्क मेःद गही ओन्द गनयाँ अरा आःलो मेःद गही ओन्द गनयाँ गही नलंग छाव ओन्टेम मनी। आःलो मेःद गही बग्गे गनयाँ तेंग्गा गे गुट्ठी जोड़ोरका ती बग्गे गनयाँ मनी काःली। नमूद गे - ओये बरआ लगी। ई बकपून गही बग्गे गनयाँ - ओये गुट्ठी बरआ लगी’ मनी। पहेंस, मुक्क मेःद गही बग्गे गनयाँ छाव जुदम मनी। नमूद - आःली बरआ लगी’ ही बग्गे गनयाँ ‘आःली बगय बरआ लगनय’ मलता ‘आःली बगर बरआ लगनर’ मनी। इसन बग्गे गनयाँ नु, आःली बगर बरआ लगनर मलता बरआ लगनय मंज्जा। 
    कुँड़ुख़ कत्था नु मुक्क मेःद अरा आःलो मेःद गही नलंग छाव ओन्द गनयाँ नु ओन्टम मनी, मुन्दा बग्गे गनयाँ नु जुदा-जुदा मनी। इसन बुझुरना गही कत्था तली का - कुँड़ुख़ खोंड़हा ओतोख़ मुक्का सवंगन बिटी, बहीन, ख़ेड़ो अरा अयंग बअ़र मइन चिअ़ई अरा बग्गे गनयाँ नु मेःत सवंग गने ओड़ासरी मनी। बअ़ना कत्था एन्ने तली का ओतोख़ कुकोय जिया का आःली जिया तंगआ एड़पा-पल्ली, बली-बखड़े, पद्दा-पड़हा ही सियाँ नु सुघड़ मनी। अवंगे, कत्था नु धरमे सवंग तुले सिरजन-बिरजन ननना अरा आल उज्जा-बिज्जा गे डहरे तिंग्गका कत्थन उजगो नंज्जका बेसे तेंगताःरका रअ़’ई दरा बुझुर-नखरतार’ई बि’ई।
7.  कुँड़ुख़ कत्था ता सरह तोड़, हिन्दी अरा संस्कृत ही सरह तोड़ ती बिलग रअ़ई। हिन्दी नु मूली सरह (मूल स्वर) अ, इ, उ - मून्द गोटंग भइर मनी अरा जोट्ठा सरह (संयुक्त स्वर अथवा दीर्घ स्वर) अ + अ = आ, इ + इ = ई, उ + उ = ओ, अ + ए = ऐ, अ + ओ = औ बअर अखताःर‘ई। कुँड़ुख़ कत्था नु - इ, ए, उ, ओ, अ, आ - सोय गोटंग सन्नी सरह (हृस्व स्वर) मनी। ई लेखा हिन्दी गही देवनागरी लिपि ती टूःड़ना-बचना नु कुँड़ुख़ कत्था ही सन्नी ‘ए’ अरा सन्नी ‘ओ’ हहस गे चिन्हा मल्ला। आ चड्डे कुँड़ुख़ कछनखर‘उ आलर, हिन्दी गही ‘ए’ अरा ‘ओ’ हहसन हिन्दी लेखा मल फुरचाअ़नर, तंगआ अयंग कत्था ता चाःलो बेसे सन्नी ‘ए’ अरा सन्नी ‘ओ’ बेसे फुरचाअ़नर। 
    कुँड़ुख़ कत्था अरा तोलोङ सिकि तोड़पाब नु - इ ए उ ओ अ आ मूली सरह मलता मूली तोड़ बातार’ई। इबड़ा उरमी गही मुईंता सरह अरा उरमी ही दिगहा सरह छाव ही बेहवार मनी। ई लेखा कुँड़ुख़ कछनखरना नु 6 x 4 = 24 गोटंग सरह हहस गही बेहवार मनी। हिन्दी अरा संस्कृत ही सन्नी सरह बेसे कुँड़ुख़ कत्था नु हूँ सन्नी सरह मनी, मुन्दा कुँड़ुख़ गही दिगहा सरह हिन्दी अरा संस्कृत ही दीर्घ स्वर ती जोक्क दिगहा मनी। हिन्दी अरा संस्कृत ही दीर्घ स्वर ही फुरचारना बेड़ा, हिन्दी अरा संस्कृत नु दोगुना मनी, पँहेस कुँड़ुख़ कत्था नु ईद अढ़ाई गुना मनी।
8.  कुँड़ुख़ कछनखरना नु हिन्दी गही ' ष्‍, श, क्ष, ज्ञ, त्र, श्र, ऋ तोड़ गही बेहवार मल मनी। ई लेखेम कुँड़ुख़ कछनखरना नु - ´ञ़, ख़, अरा अ़ हहस ही बेहवार मनी, एकदा गे हिन्दी नु चिनहाँ मल्ला। अवंगे कुँड़ुख़ कत्थन टूड़ा गे ख, ञ अरा अ गही किय्या नुक्ता (तल व्यंजन) चिअर ख़, ´ञ़, अरा अ़ (अर्द्ध स्वर अ/व्यंजन अ़) नंज्जका अरा मनचका रअ़ई। हिन्दी मलता संस्कृत नु - य अरा व गही बेहवार अर्द्धस्वर बअर मनी। ईद कुँड़ुख़ नु हुँ, एन्नेम बर’ई। कुँड़ुख़ भाषा की यह ध्वनि, जिसे फोनेटिक विज्ञान में Glotol Stop कहा गया है (KuruxPhonetic Reader – Dr. Francis Ekka ), संस्कृत में उसे विकारी अ़ या अर्द्धस्वर अ तथा व्यवहारिक हिन्दी में इसे व्यजंन अ़ कहा जाता है। अतएव व्यजंन अ के लिए अ़ तल अक्षर अ रखा गया है। यह ध्वनि अरबी में भी प्रचलित है जैसे - मअ़लूम। (वृहत व्याकरण भास्कर - डॉ0 वचनदेव कुमार)।
9.  कुँड़ुख़ भाषा व्याकरण के विकास के संबंध में तमिल एवं हिन्दी के विद्वान डॉ. एम. गोविन्द राजन ने अपने राँची आगमन के दौरान (हरि निवास, राँची) दिनांक – 12.10.2013 को चिकित्सक सह कुँड़ुख़ साहित्यकार डाँ. नारायण उराँव ‘सैन्दा’ के साथ एक परिचर्चा में दो सुझाव दिये -             
(i) कुँड़ुख़ भाषा के वैयाकरणिक समस्या पर कुँड़ुख़ समाज के लोग ही निर्णय करें कि उनके लिए सुविधा जनक क्या है? इसके लिए वे सबकी बातें सुनें और समाज के लोग बैठकर सामाजिक आचार-व्यवहार, संस्कार-संस्कृति तथा भाषा विज्ञान के बीच सामंजस्य स्थापित कर निर्णय लें।                  
(ii) कुँड़ुख़ भाषा, द्रविड़ भाषा परिवार का सदस्य है, अतएव निर्णय लेते समय उनका झुकाव अपने भाषा परिवार की ओर होना चाहिए। 
10.  व्याकरण विकास की परिचर्चा के क्रम में, दिनांक 24.02.2015  को नोर्थ ईस्ट यूरोपियन यूनिवर्सिटी, हॉलैंड के चांस्लर, मानवशास्त्री प्रो. डॉ. मोहन कान्त गौतम, ने जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, राँची विश्वविद्यालय, राँची में सम्पन्न सेमिनार में कहा - दुनियाँ में विलुप्त हो रही भाषाओं को बचाने के तीन पहलु हैं:- 
(i) भाषा में Coinage of words हो। 
(ii) भाषा की अपनी प्रकृति अथवा व्याकरण की मूलता को बचाकर रखा जाय। 
(iii) विश्वविद्यालय स्तर पर एक सामाजिक प्रयोगशाला स्थापित हो। 
    इस सेमिनार के दो दिन पूर्व दिनांक 22.05.2015 को भाषा विकास की चर्चा के क्रम में प्रो. मोहन कान्त गौतम ने मानवशास्त्री प्रो. डॉ. करमा उराँव की उपस्थिति में डाँ0 नारायण उराँव के साथ बातचीत के क्रम में कहा - हिन्दी के प्रथम व्याकरणाकार एक गैर भारतीय व्यक्ति थे। लखनउ (भारत) में रहते हुए उन्होंने प्रथम हिन्दी व्याकरण की रचना की शुरूआत 1698 ई0 में डच भाषा में की। उनका नाम जे. जे. केटेलार था और वे एक जर्मन नागरिक थे। यही कारण है कि हिन्दी व्याकरण का अंगरेजी व्याकरण के साथ भी नजदीकी संबंध है। उन्होंने कहा कि दुनियाँ की प्राचीन भाषाओं में कर्ता कारक का चिह्न (कारक चिह्न) नहीं होता है, जैसे – John is Coming. Zeny is Coming, मंगरा गच्छति, मंगरी गच्छति। इस कथन पर डाँ0 नारायण उराँव ने तर्क दिया कि कुँड़ुख़ जैसी प्राचीन भाषा में कर्ता कारक का चिह्न ‘अस’, ‘अद’, ‘अय’ एवं ‘अर’ है और वाक्य में कर्ता के अनुसार ही क्रिया का रूप बदलने में इन कारक चिन्हों का भरपुर उपयोग होता है। जैसे - बिरसस उगता कमआ लगदस। बिरसा गर उगता कमआ लगनर। बिरसी मण्डी बीतआ लगी। बिरसी गर मण्डी बीतआ लगनर (आःलस-आःली मजही) या बिरसी बगय मण्डी बीःतआ लगनय (आःली-आःली मजही )।
11.  कुँड़ुख़ भाषा में ‘‘कर्ता कारक का चिह्न’’ विषयक परिचर्चा, व्याकरणाकारों के बीच एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। इस संबंध में दिनांक 09.12.2005 से 18.12.2005 तक सम्पन्न "Terminology Planning in kurux" सेमिनार में भी इस विषय पर चर्चा करते हुए भाषाविद् प्रो0 आर. एलांगियन की ओर से कहा गया – "There is no case without case sign" और इसके तहत उन्होंने कर्ता कारक का नामकरण नहीं रखने का सुझाव दिया, किन्तु कुँड़ुख़ भाषा का व्याकरण एवं कई कार्यशालाओं में इन विषयों पर समीक्षा करने के बाद ‘‘कर्ता कारक का चिह्न’’ विषयक तथ्य उजागर हुआ कि - कुँड़ुख़ भाषा में कर्ता कारक का चिह्न ‘अस’, ‘अद’, ‘अय’ एवं ‘‘अर’’ है, जिसे डॉ. नारायण उराँव द्वारा, प्रोफेसर गौतम जी के समक्ष स्पष्ट रूप से रखा गया। इन बातों को इस प्रकार समझा जाना चाहिए - जैसे उपर उद्धृत वाक्य - बिरसस उगता कमआ लगदस में बिरसा (बिरसा नामक व्यक्ति) का कर्ता कारक पुलिंग एकवचन रूप बिरसस हुआ, जिसके अनुसार क्रिया का रूप कमआ लगदस आया। वहीं पर दूसरा वाक्य -बिरसा गर उगता कमआ लगनर में बिरसा का कर्ता कारक पुलिंग बहुवचन रूप बिरसा गर हुआ, जिसके अनुसार कमआ लगनर क्रिया रूप आया। इसी तरह स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के साथ वाक्य में क्रिया का भी रूप परिवर्तन होता है। जैसे - बिरसिद मण्डी बीतआ लगी वाक्य में बिरसी का कर्ता कारक स्त्रीलिंग एकवचन रूप बिरसिद हुआ, जिसके अनुसार बीतआ लगी क्रिया रूप आया। उसी तरह - बिरसी गर मण्डी बीतआ लगनर (स्त्री एवं पुरूष के बीच बातचीत) वाक्य में बिरसी का कर्ता कारक स्त्रीलिंग बहुवचन रूप बिरसी गर हुआ। इसी तरह बिरसी बगय मण्डी बीतआ लगनय वाक्य में - बिरसी का कर्ता कारक स्त्रीलिंग बहुवचन रूप बिरसी बगय हुआ, जिसके अनुसार बीतआ लगनय (स्त्री-स्त्री के बीच बातचीत) क्रिया का रूप आया।    
12. कुँड़ुख़ भाषा की संरचना अति विशिष्ट है। इसकी संरचना को समझने के लिए वैदिक व्याकरण का सहारा लेना होगा। वैदिक व्याकरण में किसी एक मूल क्रिया धातु से 90 क्रिया शब्द बनता है। यह 90 की गनना, 10 X 3 X 3 = 90  जो 10 लकार, 3 पुरूष एवं 3 वचन के गुणनफल के बराबर है। किन्तु लौकिक व्याकरण अर्थात वर्तमान समय में मात्र 45 क्रिया शब्द की ही पढ़ाई-लिखाई होती है। यह 45 की गनना, 5 X 3 X 3 = 45, जो 5 लकार, 3 पुरूष एवं 3 वचन के गुणनफल के बराबर है। परन्तु संस्कृत की तुलना में कुँड़ुख़ भाषा की क्रिया शब्द रचना, संख्या में कम नहीं है। इसमें एक मूल क्रिया धातु से लगभग 300 से अधिक (100 से अधिक मूल रूप तथा 200 से अधिक संयुक्त रूप) क्रिया शब्द बनते है और व्यवहार में हैं।  इसी तरह Tense या काल के भेद, संस्कृत या हिन्दी की तरह ही तीन हैं। परन्तु, संस्कृत में Continuous tense का रूप नहीं होता है, जबकि कुँड़ुख़ में इसका प्रयोग अत्यधिक है। कुँड़ुख़ में वर्तमान काल के वाक्य - 1. मंगरस टूड़दस, 2. मंगरस टूःड़ा लगदस, 3. मंगरस टूःड़का रअ़दस, 4. मंगरस टूःड़नुम रअ़दस। संस्कृत में अनुवाद - 1. मंगरा लिखति 3. मंगरा अलिखत्।     
13. बअ़नर हिन्दी भखा, संस्कृत ती उरूख़की रअ़ई, मुन्दा हिन्दी व्याकरण, अंगरेजी गने हुँ बग्गेम हेद्दे रअ़ई। नमूद - 
(i) हिन्दी नु संज्ञा गही खन्दहा (भेद) जुदा-जुदा रअ़ई, पँहेस संस्कृत नु जुदा-जुदा खन्दहा मल्ला। हिन्दी नु संज्ञा गही खन्दहा गही घोख, अंगरेजी ती बरचकी रअ़ई। संस्कृत नु बाःतार’ई - उरमी नाःमे संज्ञा तली। ई लेखा वर्णमाला, वर्ण विचार गुट्ठी उरमी संज्ञा गनेम ख़ोजतार’ई। 
(ii) हिन्दी नु वाक्य विग्रह के प्रकार - उदेश्य और विधेय गही घोख संस्कृत नु मल्ला। हिन्दी नु उदेश्य और विधेय ही घोख अंगरेजी ती बरचकी रअ़ई। 
(iii) हिन्दी नु सर्वनाम के भेद, संस्कृत ती बिलग रअ़ई। संस्कृत नु पुरूषवाचक सर्वनाम मून्द बरन मनी:- (क) प्रथम पुरूष - सः (वह)। (ख) मध्यम पुरूष - त्वम् (तुम)। (ग) उत्तम पुरूष - अहं (मैं)। हिन्दी नु हुँ पुरूषवाचक सर्वनाम मून्द बरन मनी: (क) उत्तम पुरूष - मैं, हम, हमलोग। (ख) मध्यम पुरूष - तुम, तुमलोग, आप। (ग) अन्य पुरूष - वह, वे, यह, ये। हिन्दी नु पुरूषवाचक सर्वनाम गही भेद, अंगरेजी ग्रामर गही तरजुमा तली मुन्दा संस्कृत ता पुरूषवाचक सर्वनाम गही भेद आध्यात्मिक अवधारणा ती गढ़न मंज्जकी बि’ई। संस्कृत नु पुरूषवाचक गही प्रथम पुरूष सः गही मने सर्वशक्तिमान ईश्वर अर्थात वह पुरूष, बुझुरतार’ई। इसन, संस्कृत ता प्रथम पुरूष सः बक्क धरमे सवंग गे बरचकी बि’ई। पहें, हिन्दी नु, संस्कृत ता सः गही तरजुमा वह, अन्य पुरूष बाताःर’ई। ईद, हिन्दी अरा संस्कृत गही हेद्दे मनना कत्थन गेच्छा ले हुअ़ई। संस्कृत गही पुरूष अरा अंगरेजी ही Person ही हेद्दे ता कत्था बेसेम कुँड़ुख़ नु आःलस-आःली-आःलो सवङ गे ओन्द किता ही उइजी पिंज्जका ही नाःमे आःले उइजी पिंज्जका पिंजतारकी रअ़ई।
(iv) हिन्दी नु काल (परिया) गही खन्दहा, अंगरेजी गही Tense बेसे तेंगतारकी रअ़ई। इसन अंगरेजी नु Tense गही उरमी खन्दहा नु नलंग छाव बदलार’ई, मुन्दा हिन्दी नु काल गही उरमी खन्दहा नु नलंग छाव मल बदलार’ई। नमूद – I am eating Mango - मैं आम खा रहा हूँ। have been eating Mango -  मैं आम खा ही रहा हूँ। 
    इन तथ्यों से प्रश्न उठता है क्या, हिन्दी के प्रथम व्याकरणाकार गैर भारतीय थे ? इन तथ्यों की परिचर्चा वैयाकरणाकारों के बीच एक संवेदनशील विषय रहा है और वाद-विवाद हमेशा ही हुआ करती है।

14.  संस्कृत व्याकरण के प्रथम व्याकरणाकार के रूप में महर्षि पाणिनी के नाम की स्वीकृति जग जाहिर है। परन्तु प्रथम हिन्दी व्याकरणाकार के नाम पर साहित्यकारों के बीच दो विचारधारा है:-
(i) Native Hypothesis (स्थानीय परिकल्पना) - भारतीय साहित्यकारों मे जियाउद्दीन एवं चौधरी के अनुसार - प्रथम हिन्दी व्याकरणाकार Mirzā-Khān-ibn-Fakkru-u-dīn हैं और प्रथम हिन्दी व्याकरण का आधार, Mirzā-Khān-ibn-Fakkru-u-dīn"s grammar of Braj Bhāsā, written in 1676 है। **History of the Hindi Grammatic Tradition, By: TEJ K BHATIA, E.J. BRILL, LEIDEN NEW YORK, 1987, page – 17
  
(ii) Non-Native Hypothesis (गैर स्थानीय परिकल्पना) - वैश्विक मंच के साहित्यकारों का मानना है कि प्रथम हिन्दी व्याकरणाकार, एक जर्मन नागरिक हैं। गूगल में प्रकाशित पुस्तक A History of the Hindi Grammatic Tradition के अनुसार, वे जर्मन नागरिक जे. जे. केटेलार (Joan Josua ketelaar) है, जिन्होंने प्रथम हिन्दी व्याकरण का रचना 1698 ई0 में डच भाषा में किया। उस लेख को 1743 ई0 में डेविड मिल्स (David Mills"s) द्वारा डच से लैटिन में अनुवाद किया गया तथा निदरलैंड निवासी विच्चुर (Vechoor) ने उसे 1976 ई0 में लैटिन से हिन्दी में अनुवाद किया। **History of the Hindi Grammatic Tradition, By : TEJ K BHATIA, E.J. BRILL, LEIDEN NEW YORK, 1987, page – 21
15. तथ्य है कि अंग्रेजी के माध्यम से दुनियाँ के कई भाषाओं के साहित्य रचे गये। इसके लिए अंगरेजों ने लगभग 19वीं सदी के अंतिम दशक में ही Second Oriental Congress, GENEVA में अंग्रेजी भाषा और रोमन लिपि के माध्यम से ध्वनि विज्ञान के आधार पर मानकीकरण कर दुनियाँ के दूसरी भाषाओं में साहित्य रचना आरम्भ किये। जिनमें से Riv. O. Flex (1874), Rev. F. Batseh (1886), Rev. F. Hahn (1898), Rev. A. Grignard (1924), Rev. C. Bleses (1956)  की पुस्तकें देखने एवं पढ़ने योग्य है। आजादी के बाद कुछ कुँड़ुख़़ भाषियों द्वारा देवनागरी लिपि के माध्यम से पुस्तकें लिखी गईं। इनमें से ‘‘मुन्ता पूँप झुम्पा: दवले  कुजूर (1950), कुँड़ुख़ नैगस: शान्ति प्रबल बाखला (1952), ‘कुँड़ुख़ कत्था अरा कत्थ बिल्लिन ईदऊ: डॉ. ख्रीस्त मिखाइल तिग्गा (1952), कुँड़ुख़ कत्थ बिल्ली: शान्ति प्रबल बाखला (1960),  ‘कुँड़ुख़़ कत्थ बिल्ली: श्री पी. सी. बेक (वर्ष 1978 ई0), कुँड़ुख़ फोनेटिक रीडर: डॉ. फ्रांसिस एक्का, लरका आन्दोलन: श्रद्धेय बिहारी लकड़ा, ‘चुरकी डहरे’: श्रद्धेय अहलाद तिर्की आदि पुस्तकें हैं। वर्तमान में राँची विश्वविद्यालय, राँची के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग तथा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वद्यिालय, राँची में स्नातकोत्तर स्तर तक पढाई-लिखाई देवनागरी लिपि एवं तोलोंग सिकि में चल रही है। 
16.  कुँड़ुख़़ समाज द्वारा तोलोङ सिकि (लिपि) को कुँड़ुख़़ भाषा की लिपि के रूप में स्वीकार कर पठन-पाठन का कार्य चलाया जा रहा है। इस लिपि को वर्ष 2003 में झारखण्ड सरकार द्वारा कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में स्वीकार किया गया है तथा 19 फरवरी 2009 को मैट्रिक में एक विद्यालय को इस लिपि से कुँड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा लिखने की अनुमति दी गई है। झारखण्ड अधिविद्य परिषद, राँची के अधिसूचना संख्या - JAC/गुमला/16095/12-0607/16 दिनांक 12.02.2016 द्वारा वर्ष 2016 से मैट्रिक परीक्षा में कुँड़ुख़ भाषा पत्र को तोलोङ सिकि (लिपि) में परीक्षा लिखने की अनुमति दी गई है। प. बंगाल सरकार में 01 जून 2018 से कुँड़ुख़ भाषा को राज्य का आठवाँ Official Language का दर्जा प्राप्त है। भाषा विकास के इस चरण पर अब कुँड़ुख़ समाज वर्ष 2017 से, 12 से 20 फरवरी तक कुँड़ुख़़ भाषा तोलोङ सिकि सप्ताह मनाना आरंभ किया है।
17.  झारखण्ड अधिनियम संख्या 29, 2011 विधि विभाग, अधिसूचना, दिनांक 18 नवम्बर 2011 द्वारा झारखण्ड में 12 द्वितीय राजकीय भाषाओं में से कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा की भी द्वितीय राजकीय भाषा की मान्यता प्राप्त है। प. बंगाल सरकार में 01 जून 2018 से कुँड़ुख़ भाषा को राज्य का आठवाँ Official Language का दर्जा प्राप्त है। 
18. कुँड़ुख़ भाषा की वैयाकरणिक विशेषताओं को इस भाषा की लिपि, तोलोंग सिकि के सापेक्ष में इस प्रकार समझा गया है। इस भाषा का उच्चारण खण्ड-ब-खण्ड (Agllutinative) होता है। इसे Syllablic (सङह) भी कहा जाता है। हिन्दी में इसे खण्ड-ब-खण्ड उच्चरित होने वाला समझा जाता है। कुँड़ुख़ भाषा के उच्चारण में एक स्वर मात्र भी शब्द-खण्ड के रूप में प्रयुक्त होता है तथा दूसरे प्रकार के शब्द-खण्ड में व्यंजन एवं स्वर मिलकर पूरा करते हैं। स्वर के बिना व्यंजन अकेला शब्द-खण्ड नहीं बनाता है। जैसे - ओथा = ओ+था, ओथोरआ = ओ+थोर+आ। इस तरह कहा जा सकता है कि एक शब्द-खण्ड में यंजन वर्ण के साथ कम से कम एक स्वर वर्ण का होना आवश्यक है। बिना स्वर के शब्द-खण्ड पूरा नहीं होता है। जैसे - कला = क + ला = क् + अ + ल् + आ, बरा = ब + रा = ब् +अ + र् + आ, गुचा = गु + चा = ग् + उ + च् + आ, ओना = ओ + ना = ओ + न् + आ आदि।
19. कुछ देशज एवं विदेशज ध्वनियाँ हैं, जिनका उच्चारण सीखना चाहिए, जिससे दूसरी भाषाओं को भी सही-सही बोला एवं लिखा जा सकता है। इन ध्वनियों को समझने के लिए इदहि चिन्हाँ खण्ड में ध्वनि चिन्ह के साथ ध्वनि मान दिया गया है। जैसे -  बॉल, फ़ादर, शरीफ़ा।
20. देवनागरी लिपि से कुँड़ुख़ भाषा के सभी ध्वनियों को ज्यों का त्यों लिखने में कठिनाई होती है। अतः देवनागरी लिपि के मूल सिद्धांत ‘एक ध्वनि एक संकेत’ के अनुसार तथा पुनरूक्ति दोष से बचने हेतु प्रचलित ध्वनि चिह्न के नीचे या उपर ‘भाषा विज्ञान एवं तकनीकि सम्मत,’ पूरक चिह्न देकर पढ़ने एवं लिखने के तरीके को तोलोंग सिकि में अपनाया गया है, जिस प्रकार कि उर्दू भाषा के ध्वनियों को दिखलाने के लिए देवनागरी अक्षर के नीचे तल विन्दु देने की मान्यता है। जैसे - क़, ख़, ग़, ब़, फ़, ज़, व़ आदि। कुँड़ुख़ भाषा के ध्वनियों के लिए पूरक चिह्न का प्रयोग इस प्रकार है:-    
(क) दिगहा सरह (Long Phone) को दिखलाने के लिए दिगहा ए एवं दिगहा ओ ध्वनि को क्रमवार एः तथा ओः की तरह लिखकर पढ़ा एवं समझा गया है। फ़ादर कामिल बुल्के की पुस्तक ‘‘अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश’’ में अक्षर के बाद " : " (कॉलन) चिह्न देकर दिगहा सरह (Long Phone)  को दिखलाने के लिए व्यवहार किया गया है। इस पद्धति को हिन्दी साहित्य के विद्वान डॉ. दिनेश्वर प्रसाद द्वारा भी समर्थन किया गया। जैसे - कों:ड़ा-कों:ड़ा, मोःड़ा, ओःड़ा, एःड़ा, तेःला, मोःख़ो आदि।
(ख) हेचका हरह (Glotal Stop) को दिखलाने के लिए ‘ अ़ ’ चिह्न का व्यवहार किया गया है। जैसे -रअ़ना, बअ़ना, चिअ़ना, नेअ़ना, खेअ़ना, होअ़ना, चोअ़ना आदि। आधुनिक हिन्दी व्याकरणाकार इस पद्धति के पक्षधर हैं।      
    (संस्कृत वर्णमाला में ड़ एवं ढ़ वर्ण नहीं है अर्थात हिन्दी वर्णमाला में ड़ तथा ढ़ ध्वनि का संस्करण, आर्य भाषा परिवार में बाहरी भाषा के प्रभाव को दर्शाता है। उर्दू, अरबी, अंग्रेजी, कुँड़ुख़ (उतरी द्रविड़ भाषा) एवं गोंडी (मध्य द्रविड़ भाषा परिवार) आदि भाषाओं के शब्दों को लिखने के लिए देवनागरी लिपि के अक्षरों के नीचे डॉट (तलविन्दु) चिह्न देकर लिखा जाता है। जैसे - ख़ब़र, ग़ब्बर, व़ज़ीर, व़ेल, चिअ़ना, बिअ़ना, नेअ़ना, बेअ़ना, होअ़ना, चोअ़ना, बअ़ना, रअ़ना, एड़पा, माड़ना, बाढ़ी गढ़े, ख़ज्ज, ख़ेंस, इञि़रना, कोरञ़ो, बाञ़लो आदि। भारतीय इतिहास में गंगा से नर्मदा के बीच का भूभाग को गोंडवाना कहा गया है और भाषायी दृष्टि से यहाँ की भाषा गोंडी एक मध्य द्रविड़ भाषा है। इसी तरह बाल्मीकि रामायण के करूष देष (वर्तमान में गंगा और सोन नदी के बीच का क्षेत्र, अघौरा पर्वत सहित) जो द्रविड़ शासक ताड़का (जो रावण की फूआ थी) का क्षेत्र था। हजारों वर्षों तक साथ-साथ रहने से सांस्कृतिक सम्मिश्रण हुआ और बड़े समूह की भाषा को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होते ही विकसित होती गई। इस प्रकार हिन्दी के विकास में मध्य द्रविड़ एवं उतरी द्रविड़ भाषा का भी प्रभाव है। अतएव उतरी द्रविड़ भाषा के ध्वनि को दिखलाने के लिए देवनागरी अक्षरों के नीचे तल विन्दु दिया जाना बेहतर उपाय है। कुँड़ुख़ में ड़, ढ़, ख़, ञ़ तथा अ़ ध्वनि के लिए तलविन्दु लिखने का रिवाज बेहतर समाधान है। इस करूष देश को कुछ साहित्यकार कुड़ुख़ देश मानते हैं क्योंकि प्रसिद्ध ग्रंथ बाल्मीकि रामायण में वर्णित करूष देश द्रविड़ों के कब्जे में था, जिसे भगवान राम ने एक महिला शासक का बध करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया। यह क्षेत्र आर्य भाषा परिवार के शासकों के कब्जे में आने से पहले संभवतः द्रविड़ भाषी कुड़ुख़ देश रहा था, जिसे संस्कृत भाषियों ने कुड़ुख़ देश से करूष देश किया हो, क्योंकि संस्कृत में ड़ और ख़ ध्वनि नहीं है।)
(ग) कुँड़ुख़ भाषा की उच्चारण विशेषता को दिखलाने के लिए घेतला चिह्न (’)  यानि शब्दखण्ड सूचक चिह्न दिया गया है। जैसे - बरई - बर’ई,  कमई - कम’ई  इत्यादि।
(घ) कुँड़ुख़ भाषा के शब्दों को, ‘रोमन लिपि’ में लिप्यन्तरण हेतु केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर द्वारा प्रकाशित, डॉ0 फ्रांसिस एक्का की पुस्तक ‘‘कुँड़ुख़ फोनेटिक रीडर’’ में बतलाए गए सिद्धांत के आधार पर किया गया है, जो प्रयोग की दृष्टि से उत्तम है। इस सिद्धांत के अनुसार छठवाँ vowel के रूप में ā  के उपर पड़ी लकीर दिया गया है। जैसेः i, e, u, o, a, ā अर्थात अ = a, आ = ā, अँ = ã, आँ = ã̄ आदि। इस तरह कुँड़ुख़ भाषा की तोलोंग सिकि में अंगरेजी के इन वर्णों को इस तरह लिखा जाता है - i e u o a A // iE eE uE oE aE AE
    कुँड़ुख़ भाषा में इस तरह की विशिष्टता इसकी अपनी पहचान है और इसे बचाकर अगली पीढ़ी तक ले जाने की आवश्यकता है। ‘आधुनिक कुँड़ुख़ व्याकरण’ सचमुच एक आधुनिक व्याकरण है, जिसमें लोक भाषा, सामाजिक धरोहर एवं भाषा विज्ञान का अद्भुत सामंजस्य है।

Dr Narayan Oraon

( ‘आधुनिक कुँडु़ख़ व्याकरण’ पुस्तक के लेखक: डॉ0 नारायण भगत एवं डॉ0 नारायण उराँव ‘सैन्दा’)

समीक्षक: भुनेश्वर उराँव,
सहायक शिक्षक, जतरा टाना भगत विद्या मंदिर, बिशुनपुर, घाघरा, गुमला। 
एम.ए.(कुँड़ुख़),एम.ए.आर.डी., NET(2020),Trainer(TolongSiki) 

प्रकाशक: पृथ्वी प्रकाशन, नई दिल्ली।
वितरक : झारखण्ड झरोखा, शोप न - डीजी03 , न्यू बिल्डिंग, न्यू मार्केट, रातु रोड राँची (झारखण्ड), पिन – 834001, E-mail: jh.jharokha@yahoo.comनारायण भगत

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