रांची: झारखंड के आदिवासी इलाकों में घुसपैठियों का आतंक बढ़ता जा रहा है। घुसपैठिये आदिवासियों की जमीन ही नहीं लूट रहे आदिवासी बेटियों की आबरू से लेकर उनकी तस्करी तक कर रहे हैं। इसी प्रसंग में विगत रविवार यानी 24 मार्च 2024 को शाम साढ़े सात से साढ़े नौ बजे तक एक परिचर्चा का आयोजन संपन्न हुआ। विषय था: "झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सरहद पार घुसपैठियों द्वारा जमीन और बेटियों की मची लूट पर रोकथाम की पहल "
इस ऑनलाइन परिचर्चा की शुरुआत में राखी मिंज ने अपने विचार रखा। उन्होंने कहा, लड़के-लड़कियों को इस विषय में जागरुक करना जरुरी है। चर्चा में विनीत भगत ने कहा ग्राम सभा को मजबूत बनाए रखने और उसका पालन करना इसका अहम समाधान बताया।
गुजरात से जुड़े बृजेश भूसारा, जो कोंकणी भाषी है, उन्होंने कहा कि हमारी बेटी-बहन क्यों दूसरे जाति में शादी कर रही है? इस पर विचार करना चाहिए। राजनीति हमारा समाधान नहीं खुद के लोगों को ही काम करना होगा। जनरेशन गैप को दूर करना जैसे 70 वर्ष के बुद्धिजीवी से 30 से 35 वर्ष के युवा बैठना सुनना नहीं चाहते हैं। हमारी पारंपरिक शिक्षा को बिल्कुल अलग कर दिया गया है और न्यायिक व्यवस्था भी हम खो चुके हैं जिससे अपराधी को कठोर दंड देने में सक्षम नहीं है। बाहरी शक्तियां का कानून हम पर हावी है साथ ही बात यह भी है कि आदिवासियों में देश की चुनाव प्रक्रिया जैसी व्यवस्था नहीं है।
छत्तीसगढ़ से जुड़े लव मांझी ने कहा की स्वयं हमें पंजीकरण करना होगा हमारे लड़के-लड़कियां दूसरे समुदाय में क्यों चले जाते हैं? इसको सोचना होगा इसके अलावा मीडिया के माध्यम से क्या सही है और क्या सही नहीं है? इसको समझना भी पड़ेगा। बाहर जाने वाले हमारे लोग बाहर अपना भाषा- संस्कृति स्थापित नहीं कर पाते हैं और बाहर जाने के बाद अपना भाषा बोलना छोड़ देते हैं। गांवों में बाहरी लोगों का दिनों दिन बढ़त होती चली जा रही है, गोत्र व्यवस्था पहले सुगमता से होती थी जिसकी वर्तमान में अवमानना देखने को मिल जाती है। एजुकेशन के साथ विवाह समय से नहीं हो पाना भी युवाओं के भटकाव की ओर रुख करने पर मजबुर करता है।
रंथु उरांव ने शिक्षा जगत में लड़कों का पिछड़ापन और लड़कियों का शिक्षा में आगे होना भी एक कारण बताया जिससे आदिवासी समाज की महिलाएं बेहतर विकल्प के लिए समाज से बाहर अपना जीवनसाथी चुनाव करती है। अपने कबीला में एकजुट रहेंगे तभी जागरुक बने रह पाएंगे। आज के तारीख में युवा बुद्धिजीवीयों की बातें सुनना पसंद नहीं करते हैं। अपने समुदाय के लिए जरुरी है नशा मुक्त समाज कैसे हो? नवयुवक का पढ़ाई नहीं होने का कारण नशापान ही है युवा बुद्धिजीवी को आगे आना होगा हमारे समाज के बीच नहीं होना अपना भाषा संस्कृति को बनाए रखना में मुश्किलें खड़ी करता है।
जलेश्वर भगत ने पढ़ाई के नाम पर विस्थापित होकर बाहर जा रहे युवा की भटकाव की ओर इंगित किया। कुछ अन्य बिंदुओं को जोड़ते हुए कहा हमारे आदिवासी प्रशासनिक व्यवस्था से बाहर होकर चल रहे हैं कहीं ना कहीं राजनीतिक मुद्दा भी है। अपनी प्रशासनिक व्यवस्था नहीं चलती है जैसे पड़हा व्यवस्था, मानकी मुंडा व्यवस्था, डोकलो सोहोर इत्यादि इसलिए हम आदिवासी सरकार पर निर्भर होते हैं अपने आदिवासी समाज में एकजुटता लाना जरुरी है। लड़कियां ज्यादा पढे लिखे जॉब पर जा रही हैं अलग, लड़के काम पर नहीं लग रहे हैं बाहर जाना पड़ रहा है। अपनी भाषा-संस्कृति-प्रशासन व्यवस्था को छोड़ना भी घुसपैठियों के प्रवेश का एक कारण माना गया। कबीला अभी कमजोर दिख रहा है इसलिए राजनीतिक शक्ति मिलनी चाहिए पुलिस प्रोटेक्शन कि भी हमें आवश्यकता है।
गुमला निवासी स्वाति असुर द्वारा कुछ सवाल रखा गया, सामाजिक रुप से घुसपैठ क्या होता है? उनका आसान माध्यम होता है कि लड़कियों को खिला पिला कर उपहार देकर फंसा दिया जाता है। जो युवा बाहर पढ़ने जाते हैं और उनकी कई सुविधाएं जरूरतें अधुरी रह जाती है बाहरी उन्हें कमजोर देखकर बहला फुसलाकर भी भटका दिया जाता है।
सवाल: दसवीं-12वीं के बाद बच्चे बाहर पढ़ने जाते हैं तो इनके अपनी समुदाय कैसे पहचान करेंगे? हमारी गोत्र व्यवस्था स्वयं या अन्य समुदायों के लोगों के बीच ढूंढना, मेल-मिलाप रखना और अपना त्योहार मनाने से लेकर जोड़े हुए रखा जा सकता है। आदिवासी युवा संगठनों का इसमें विशेष महत्व समझा जा सकता है। इस प्रकार परिचर्चा अगले रविवार के लिए स्थगित की गई।
रिपोर्टर: स्वाति असुर
एम.ए, बी. एड
आयोजक : धुमकुड़िया "मुद्धा", रांची।