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पिन्‍की लिन्‍डा vs बागा तिर्की : आखिर क्‍यों, छुटा-छुटी (तलाक) से पहले हो गया केस डिसमिस?..

यह वीडियो हमारे पिछले वीडियो https://youtu.be/gxus_PSq_yg का हिस्‍सा (Excerpt) है, जिसका शीर्षक था- 'कोई प्रथा कैसे बनती है कस्‍टमरी लॉ?.. | How does a custom become a Customary Law?' वीडियो में मुख्‍य वक्‍ता हैं कानून के प्राध्‍यापक श्री रामचन्‍द्र उरांव। सवाल कर रहे हैं, पत्रकार किसलय। वह पूरा वीडियो यहां देख - सुन सकते हैं। https://youtu.be/gxus_PSq_yg

कोई प्रथा कैसे बनती है कस्‍टमरी लॉ?

भारत में आदिवासियों के कई मामलों में अलग कानून चलता है, जिसे कस्‍टमरी लॉ या प्रथागत कानून कहते हैं। इस प्रसंग में हम पिछले अंक में चर्चा कर चुके हैं। आप उस वीडियो को यहां ऊपर, दाहिनी तरफ आ रहे लिंक पर देख और सुन सकते हैं। उस वीडियो में हमने कस्‍टमरी लॉ के अर्थ, उसके अलग-अलग तत्‍वों पर चर्चा की थी। आदिवासियों की रूढि़यों पर आधारित उनकी सामाजिक संरचना पर भी हम बात कर चुके हैं। आज हम कस्‍टमरी लॉ के कुछ अन्‍य पहलुओं पर बातें करेंगे। जैसे, कोई प्रथा या रूढि़ कानून बनने लायक है, या नहीं, यह तय कैसे होगा? तय करने की प्रक्रिया क्‍या है? भारतीय न्‍यायालयों में कस्‍टमरी लॉ को कितना महत्‍व मिलता है?

आदिवासियों का कस्‍टमरी लॉ अलग क्‍यों है?

आपको पता है, भारत में दो तरह के कानून चलते हैं: पहला 'जेनरल लॉ' और दूसरा 'कस्‍टमरी लॉ'। जेनरल लॉ यानी सामान्‍य कानून पूरे देश में लागू होता है, जबकि 'कस्‍टमरी लॉ' केवल आदिवासियों के प्रसंग में चलता है। आये दिन इसपर कई विवाद भी हुए हैं। मामला उच्‍च न्‍यायालयों तक पहुंचता है। और ऐन वक्‍त सामने आता है आदिवासियों का कस्‍टमरी लॉ। - कहा जाता है, आदिवासियों पर दहेज कानून लागू नहीं होता?.. क्‍यों और कैसे? - अभी पिछले दिनों आदिवासी महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्‍सेदारी को लेकर खूब विवाद हुआ। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा.. और उभर कर सामने आया कस्‍टमरी लॉ..

महादेव टोप्‍पो का आदिवासी समाज द्वारा जोरदार अभिनंदन

झारखंड की माटी के साहित्‍यकार: कवि, लेखक, अभिनेता व पूर्व बैंककर्मी महादेव टोप्पो को साहित्य अकादमी (नई दिल्ली) का सदस्य के रूप में मनोनयन किये पर आदिवासी समाज की ओर से जोरदार अभिनंदन किया गया। 05 मार्च 2023 को करमटोली (रांची) स्थित आदिवासी कॉलेज छात्रावास के पुस्तकालय भवन भवन में दर्जनों संस्‍थाओं के प्रतिनिधियों एवं स्‍थानीय युवक-युवतियों ने महादेव टोप्‍पो और उनकी धर्मपत्‍नी को पुष्‍पगुच्‍छ, झारखंडी परिधानों एवं संस्‍कारों के साथ सम्‍मानित किया। इस कार्यक्रम के संयोजक मंडल में शामिल थे, डॉ. नारायण उराँव, सैंदा, डॉ. नारायण भगत, नागराज उराँव,  डॉ.

सैन्‍दा गांव में धुमकुडि़या जतरा का आयोजन

झारखंड के गुमला जिला के सिसई थाना स्थित सैन्‍दा गांव में धुमकुडि़या जतरा का आयोजन दिनांक 16 फरवरी 2022 को किया गया था। पूर्व में धमकुड़िया एक सामाजिक तथा सांस्कृतिक विरासत का केंद्र रहा था। आधुनिक स्कूल की स्थापना के बाद यह संस्था विलुप्त होने की राह पर है। अब, जब समाज सेवियों एवं शिक्षाविदों   की दृष्टि इस ओर पड़ी तो कुछ नवयुवक नवयुवती इसे आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो गए हैं। इसी क्रम में सैन्दा ग्राम में यह धुमकुड़िया जतरा समारोह मनाया गया। इस धुमकुड़िया जतरा समारोह में इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहे लड़के भी शामिल हुए। साथ ही नौकरी पेशा वाले ग्राम वासी भी अपने बच्चों को साथ लेकर आये। इ

Learning KURUKH [Tribal Language] through Rhymes Recitation in Rural Jharkhand II

पूरा वीडियो यहां देखें: https://youtu.be/AU5W3dAqQgQ 
इस वीडियो के बाल-गीत के बोल- 
छोटे बच्‍चे अपनी मां से चिडि़यों के बच्‍चे के माध्‍यम से संदेश देते हुए कहते हैं कि - 
ओ मां, छोटी चिडि़यां चेरे-बेरे चेरे-बेरे, चीं - चीं - चीं कर रही हैं, और चेरे-बेरे, चेरे-बेरे करते हुए दूध भात मांग रही है। 
ओ मां, छोटी चिडि़यां चेरे-बेरे चेरे-बेरे, चीं - चीं - चीं कर रही हैं, और चेरे-बेरे, चेरे-बेरे करते हुए पैण्‍ट-कमीज मांग रही है। 

Learning KURUKH [Tribal Language] through Rhymes Recitation in Rural Jharkhand III

पूरा वीडियो यहां देखें: https://youtu.be/AU5W3dAqQgQ 
बाल कविता में छोटे बच्‍चों में से एक भाई अपनी छोटी बहन के लिए चन्‍दा मामा से गरम-गरम रोटी की मांग करते हुए दोनों भाई-बहन कहते हैं कि -
ओ चन्‍दा मामा, तुम मेरी छोटी बहन और मेरे लिए रोटी दो, तुम हम दोनों के लिए रोटियां दो।
ओ चन्‍दा मामा, हमारी मां का दिया हुआ रोटी गड्ढे में गिर गया, जिसे एक लालची बुढि़या उठा ली और अकेले खा गई, हमें नहीं दी।
ओ चन्‍दा मामा, छिलका रोटी नहीं, छाना हुआ रोटी हो तथा ठण्‍डा नहीं गरम हो, ओ चन्‍दा मामा तुम हमें रोटियां दो, हमें रोटियां दो।
साभार - चींचो डण्‍डी अरा ख़ीरी,

Learning KURUKH [Tribal Language] through Rhymes Recitation in Rural Jharkhand I

पूरा वीडियो यहां देखें: https://youtu.be/AU5W3dAqQgQ 
इस वीडियो में गाये जा रहे गीत के बोल- दादी-नानी अपने चरवाहे पोते से कहती है कि - 
ओ इधर-उधर नजर करने वाले बच्‍चे, तुम किस प्रकार गाय-बैल चरा रहे हो, तुम्‍हारी बकरी भाग गयी और सियार का चारा बन गई।
ओ इधर-उधर नजर करने वाले बच्‍चे, तुम घर-द्वार खेलने में लीन हो, तुम्‍हारी भेड़ भाग गई और हुण्‍डार का चारा बन गई।
ओ इधर-उधर नजर करने वाले बच्‍चे, तुम लस्‍सा-ठुंगही से चिडि़या पकड़ने में लीन हो, तुम्‍हारी बाछी भाग गई और हड़हा का चारा बन गई।

गीत से सीख : झारखंड के गांवों में आदिवासी भाषा कुंड़ुख सीखने की अदा..

ये विडियो झारखंड प्रदेश के गुमला जिला अंतर्गत सिसई प्रखंड के सैन्‍दा गांव में चल रहे धुमकुडि़या के बच्‍चों को भाषा सिखलाये जाने की कक्षाओं का अंश है। ये सभी वीडियो दिसम्‍बर 2022 में शूट किये गये थे। इस तरह की कक्षाओं के आयोजन के जरिये संध्‍या में बच्‍चों को Kurukh भाषा एवं तोलोंग सिकि, यानी लिपि, सिखायी जाती है। आइये देखते हैं पूरा वीडियो.. 

अगहन पड़हा जतरा

यह विडियो दिनांक 17 नवम्‍बर 2022 दिन गुरूवार को सम्‍पन्‍न ''अगहन पड्हा जतरा, सिलमटोंगरी'' ग्राम : बुड्का, थाना : सिसई, जिला : गुमला (झारखण्‍ड) का है। 
कहा जाता है यह पड़हा जतरा पूर्व में इसी सिलमटोंगरी स्‍थान में लगता रहा था। परन्‍तु वर्षों पूर्व यहां के जतरा के दिन एक अनहोनी घटना घटी। उस दिन जतरा झंडा दैवी कृपा से उड़कर जैरा टोंगरी पंहूच गया; और उस दिन के बाद लगातार वहां जतरा लगता आ रहा था।