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दस्‍तावेज / Records / Plans / Survey

कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि पर वर्ष 2016 में डॉ॰ निर्मल मिंज ने कहा था..

साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍य साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍यसाहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍य..

नई शिक्षा नीति 2020 का मातृभाषा शिक्षा पर कुँड़ुख़ समाज की तैयारी

ज्ञात हो कि केन्द्रा सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति 2020 लागू कर दिया गया है। इसके अन्त र्गत भाषा विषयों में से मातृभाषा को प्राथमिक स्तयर पर विशेष महत्वक दिया गया है। झारखण्डो सरकार द्वारा, एकीकृत बिहार का वर्ष 1976 की नियमावली (शिक्षा का माध्योम विषयक नियमावली) को कड़ाई से लागू करने का बात कहा गया है। बिहार, शिक्षा विभाग, अधिसूचना संख्याी 648 दिनांक 08.04.1976 के माध्य,म से 4 आदिवासी भाषा संताली, मुण्डाकरी, उराँव (कुँड़ुख़) एवं हो मातृभाषा शिक्षा का माध्यकम के रूप में स्वी‍कृति प्राप्त  है।

22 गांव सभा, पड़हा, बिसु सेन्दरा समन्वय सम्मेलन

पता : ग्राम -करकरी, पो0 - करकरी, थाना - सिसई,  जिला - गुमला - झारखण्ड, पिन - 835324 : भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची के अन्तर्गत झारखण्ड राज्य के अधिसूचित क्षेत्र में ग्राम - करकरी, पो0 - करकरी, थाना - सिसई, जिला - गुमला, झारखण्ड में संसद द्वारा पारित पेसा कानून 1996 (PESA – 1996) के धारा 4(घ) के आधार पर दिनांक 17 एवं 18 अप्रील 2021 को 22 गांव सभा (पद्दा पंच्चा), पड़हा, बिसु सेन्दरा समन्वय सम्मेलन सम्पन्न हुआ। समन्वनय सम्मेलन की अध्यक्षता एवं संचालन, परम्परागत गांव सभा के पंच्चों द्वारा किया गया। बैठक में परम्परागत आदिवासी समाज (उराँव) के बच्चों को परम्परागत शिक्षा तथा आधुनिक शिक्षा से जोड़न

आदिवासी परम्परा एवं प्रकृति विज्ञान

प्रस्तुत शीर्षक ‘‘आदिवासी परम्परा एवं प्रकृति विज्ञान’’ के द्वारा भारत देश में निवासरत आदिवासी समाज एवं उनकी जीवन गाथा में प्र.ति और उनका प्रेम को आप पाठकों तक बतलाने का यह मामूली सा प्रयास है। वैसे भारतीय संविधान में ‘‘आदिवासी’’ शब्द की परिभाशा स्पष्‍‍‍ट नहीं है फिर भी भारतीय मानस पटल पर यह शब्द प्रचलित एवं मान्य है। संवैधानिक एवं प्रशासनिक दृश्टिकोण से इस समूह के लोगों के लिए अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग किया जाता है। वहीं पर इस समूह के लोग अनुसूचित जनजाति के नाम पर संबोधित किये जाने पर अपने को ठगा हुआ महसूस करते हैं। उन्हें ‘‘आदिवासी’’ कहलाना अच्छा लगता है।                    

कुँड़ुख़ (उराँव) सामाजिक परम्परा में धर्म का अर्थ ?

विगत दो दशक से परम्रागत आदिवासी समाज आत्मोत्थान के दौर से गुजर रहा है। झारखण्ड आन्दोलन से लेकर अबतक सामाजिक एवं धार्मिक जागरण के नामपर अनेकानेक विचार-गोश्ठी एवं रैलियाँ आयोजित की गर्इ। लोग इन विचार गोश्ठियों में आते और चले जाते। धीरे-धीरे अब ये धुंंध के बादल छंटने लगे हैं। गांव के बुर्जुग, शिक्षाविद, धर्म के जानकार आदि इन गुत्थियों को सुलझाने में अपनी ज्ञान उर्जा का उपयोग कर रहे हैं। कर्इ लोग, अपने एवं अपनों के बीच प्रतिदिन उठ रहे सवालों के जबाब ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर माथा-पच्ची कर रहे हैं। छोटानागपुर के पठार से लेकर असम के चाय बगान तक उठ रहे सामाजिक एवं धार्मिक उलझावपन के उधेड़बुन की कड़ी में

कुँड़ुख़ (उराँव) परम्परा में अध्यात्मिक मान्यताएँ

साधरणतया, लोग कहा करते हैं - आदिवासियों का कोर्इ धर्म नहीं है। इनका कोर्इ   आध्यात्मिक चिंतन नहीं है। इनका विश्‍वास एवं धर्म अपरिभाशित है। ये पेड़-पोधों की पूजा करते हैं .... आदि, आदि। इस तरह के प्रश्‍नों एवं शंकाओं को प्रोत्साहित करने वालों से अगर पूछा जाय - क्या, वे अपने विश्‍वास, धर्म आदि के बारे में जानते और समझते हैं ?

लरका आंदोलन का अमर शहीद वीर बुधू भगत और अंगरेजी बंदूक

भारत की आजादी की लड़ाई में सन् 1857 या उसके बाद, देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीदों में कुछ के नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं। किन्तु 1857 ई.

सिलागामी (सिलागांई) धरती का लाल क्रांतिकारी क्यों बना?

बीर बुधू भगत, बचपन से ही गरीबी, भ्ाुखमरी के साथ जमींदार, साहुकार, महाजन, बनिया अर्थात् गैर आदिवासियों की बर्बरता को देखे। वे देखे कि किस प्रकार तैयार फसल को जमींदार उठा ले जाते थे, और गरीब गाँव वालों के घर कर्इ-कर्इ दिनों तक चुल्हा नहीं जल पाता, गाँव के बच्चे, बुढ़े सभी भ्ाूख से बिलखते रहते। माँ बहनों का खुन सूखता था, लेकिन इन सभी मार्मिक दृश्यों से जमींदारों का मन तनिक भी नहीं पसीजता था। वे किसानों से कर (मालगुजारी) के रूप में बड़ी रकम वसूल कर ले जाते थे। उन लोगों का विरोध करने का हिम्मत कोर्इ नहीं कर पा रहा था। उलटे सूदखोरों, महाजनों एवं जमींदारों को ब्रिटिश हुकूमत का साथ मिल रहा था। ब्रिटि

जतरा टाना भगत

चउगिरदा हरियर टोड़ंग परता रहचा। नाखो कोंड़ा परता दिम हरियर एथेरआ लगिया। मन्ने मास ती झबरारका अकय दव शोभ’आ लगिया। सलय-सलय एका नगद ताका तागर’आ लगिया। झरना हूँ हहा-हीही बाहरनुम डण्डी पाड़ा लगिया। ओ:ड़ा एका नगद चेरेबेरे मना लगिया। अकय सोहान परता मझी नुम ओन्टा पद्दा रहचा। आ पद्दा ही नामे चिंगरी पुना टोला रहचा। आ पद्दा नुम जतरा भगतस गहि कुन्दरना मंज्जकी रहचा। आस की कुन्दरना सितम्बर 1888 र्इस्वी चान नु मंज्जकी रहचा। र्इद गुमला जिला ता बिसुनपुर बोलोक नू मनी। जतरा भगतस गहि तम्बस ही ना:मे कोडल उराँव अरा तंग्गियो ही नामे लिबरी रहचा। तंग आ:ली गहि नामे बिरसो रहचा। जतरा भगतस गहि ख़द्दर बुधु, बंधु, सुधु अरा दे

22 पड़हा ग्रामसभा बिसुसेन्दरा 2020 का घोषणा पत्र

जैसा कि हम सभी जानते हैं - भारतीय संविधान के निर्माण से पूर्व, भारत में बहुत से राष्ट्र, प्रदेश एवं कबिलार्इ समूह स्वतंत्र रूप से गुजर-बसर कर रहे थे। देश की आजादी के पश्‍चात् नये जीवन की तरह भारतीय संविधान का निर्माण हुआ और वे सभी पुराने दल एक झण्डे के नीचे आ गये। इस नव निर्माण के क्रम में लोगों के बीच अपने समाज एवं सम्प्रदाय के अनुसार हिन्दु पर्सनल लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ, र्इसार्इ विवाह कानून आदि का गठन हुआ और वे उसी के अनुसार चल रहे हैं। भारतीय कबिलार्इ समूह क्षेत्र के लोगों के लिए भी 5 वीं एवं 6 वीं अनुसूचित क्षेत्र के नाम से विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में संविधान में स्थान दिया गया,