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दस्‍तावेज / Records / Plans / Survey

कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि के विकास की दिशा में सामाजिक-सह-भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण: पद्मश्री स्व. डॉ रामदयाल मुण्डा

नई लिपि कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि के विकास की दिशा में सामाजिक सह भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण‚ पद्मश्री स्व डॉ रामदयाल मुण्डा द्वारा डॉ नारायण उराँव द्वारा तोलोंग सिकि लिपि के तकनीकि पहलुओं को आसानी से समझने के लिये 1997 में एक पुस्तक की रचना की गई‚ जिसका नाम – Graphics of Tolong Siki  रखा गया और सामाजिक सहयोग से इसे छपवाया गया। इस पुस्तक का लोकार्पण दिनांक 05॰05॰1997 को राँची वि‍श्वदविद्यालय‚ राँची के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में हिन्दी दैनिक‚ प्रभात खबर के प्रधान सम्पादक श्री हरिवंश जी के द्वारा सम्पन्न हुआ। समारोह में श्री हरिवंश जी ने कहा - वर्तमान भूमण्डलीकरण के दौर में पूरे विश्व। में‚

झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की लिपि 'तोलोङ सिकि' पर भाषाविद डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से विमर्श

झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की नई लिपि तोलोङ सिकि, विषय पर भाषाविद डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से विमर्श : झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की नई लिपि तोलोङ सिकि, विषय पर विचार–विमर्श करने के लिए केन्द्रीसय भारतीय भाषा संस्थासन‚ मैसूर  (भारत सरकार) के भाषाविद‚ प्रोफेसर सह निदेशक डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से मैं (डॉ॰ नारायण उराँव) बिहार की राजधानी पटना के होटल सम्राट  में 27 एवं 28 जुलाई 1996 ई0 को मुलाकात किया। उस समय डॉ॰ एक्का‚  ACTION AID  नामक संस्था के सेमिनार में मुख्यर अतिथि के रूप में पटना आये हुए थे। उनके साथ मैंने कई प्रश्नों  पर विस्तृत चर्चा किया। परिचर्चा के प्रथम

साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान (कुँड़ुख़) 2016‚ सम्मान समारोह में स्‍व. डॉ निर्मल मिंज का वक्‍तब्‍य

21 फरवरी 2017 को डॉ॰ निर्मल मिंज द्वारा दिया गया वक्तव्य : परम आदरणीय डॉ॰ विश्व्नाथ प्रसाद तिवारी, अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी, डॉ॰ के॰श्रीनिवासराव, सचिव, साहित्य अकादेमी।
मेरी मातृभाषा कुँड़ुख़ की छोटी सेवा के लिए इतना बड़ा भाषा सम्मान देकर, आपने मुझे और कुँड़ुख़ (उराँव) समाज को सम्मानित किया है, इसके लिए मैं आप लोंगों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा को 8वीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त नहीं होते हुए भी, आपने इस भाषा के सेवक को सम्मान दिया है, इसके लिए कुँड़ुख़ समाज साहित्य अकादेमी के प्रति धन्यवाद अर्पित करता है।

कुँड़ुख भाषा तोलोंग सिकि के विकास की कहानी - डॉ निर्मल मिंज

साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2019 में वक्‍तब्‍य  : कुँड़ुख भाषा तोलोंग सिकि के विकास की कहानी


kuEzux lipi qoloX siki gahi xi:ri

कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि पर वर्ष 2016 में डॉ॰ निर्मल मिंज ने कहा था..

साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍य साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍यसाहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍य..

नई शिक्षा नीति 2020 का मातृभाषा शिक्षा पर कुँड़ुख़ समाज की तैयारी

ज्ञात हो कि केन्द्रा सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति 2020 लागू कर दिया गया है। इसके अन्त र्गत भाषा विषयों में से मातृभाषा को प्राथमिक स्तयर पर विशेष महत्वक दिया गया है। झारखण्डो सरकार द्वारा, एकीकृत बिहार का वर्ष 1976 की नियमावली (शिक्षा का माध्योम विषयक नियमावली) को कड़ाई से लागू करने का बात कहा गया है। बिहार, शिक्षा विभाग, अधिसूचना संख्याी 648 दिनांक 08.04.1976 के माध्य,म से 4 आदिवासी भाषा संताली, मुण्डाकरी, उराँव (कुँड़ुख़) एवं हो मातृभाषा शिक्षा का माध्यकम के रूप में स्वी‍कृति प्राप्त  है।

22 गांव सभा, पड़हा, बिसु सेन्दरा समन्वय सम्मेलन

पता : ग्राम -करकरी, पो0 - करकरी, थाना - सिसई,  जिला - गुमला - झारखण्ड, पिन - 835324 : भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची के अन्तर्गत झारखण्ड राज्य के अधिसूचित क्षेत्र में ग्राम - करकरी, पो0 - करकरी, थाना - सिसई, जिला - गुमला, झारखण्ड में संसद द्वारा पारित पेसा कानून 1996 (PESA – 1996) के धारा 4(घ) के आधार पर दिनांक 17 एवं 18 अप्रील 2021 को 22 गांव सभा (पद्दा पंच्चा), पड़हा, बिसु सेन्दरा समन्वय सम्मेलन सम्पन्न हुआ। समन्वनय सम्मेलन की अध्यक्षता एवं संचालन, परम्परागत गांव सभा के पंच्चों द्वारा किया गया। बैठक में परम्परागत आदिवासी समाज (उराँव) के बच्चों को परम्परागत शिक्षा तथा आधुनिक शिक्षा से जोड़न

आदिवासी परम्परा एवं प्रकृति विज्ञान

प्रस्तुत शीर्षक ‘‘आदिवासी परम्परा एवं प्रकृति विज्ञान’’ के द्वारा भारत देश में निवासरत आदिवासी समाज एवं उनकी जीवन गाथा में प्र.ति और उनका प्रेम को आप पाठकों तक बतलाने का यह मामूली सा प्रयास है। वैसे भारतीय संविधान में ‘‘आदिवासी’’ शब्द की परिभाशा स्पष्‍‍‍ट नहीं है फिर भी भारतीय मानस पटल पर यह शब्द प्रचलित एवं मान्य है। संवैधानिक एवं प्रशासनिक दृश्टिकोण से इस समूह के लोगों के लिए अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग किया जाता है। वहीं पर इस समूह के लोग अनुसूचित जनजाति के नाम पर संबोधित किये जाने पर अपने को ठगा हुआ महसूस करते हैं। उन्हें ‘‘आदिवासी’’ कहलाना अच्छा लगता है।                    

कुँड़ुख़ (उराँव) सामाजिक परम्परा में धर्म का अर्थ ?

विगत दो दशक से परम्रागत आदिवासी समाज आत्मोत्थान के दौर से गुजर रहा है। झारखण्ड आन्दोलन से लेकर अबतक सामाजिक एवं धार्मिक जागरण के नामपर अनेकानेक विचार-गोश्ठी एवं रैलियाँ आयोजित की गर्इ। लोग इन विचार गोश्ठियों में आते और चले जाते। धीरे-धीरे अब ये धुंंध के बादल छंटने लगे हैं। गांव के बुर्जुग, शिक्षाविद, धर्म के जानकार आदि इन गुत्थियों को सुलझाने में अपनी ज्ञान उर्जा का उपयोग कर रहे हैं। कर्इ लोग, अपने एवं अपनों के बीच प्रतिदिन उठ रहे सवालों के जबाब ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर माथा-पच्ची कर रहे हैं। छोटानागपुर के पठार से लेकर असम के चाय बगान तक उठ रहे सामाजिक एवं धार्मिक उलझावपन के उधेड़बुन की कड़ी में

कुँड़ुख़ (उराँव) परम्परा में अध्यात्मिक मान्यताएँ

साधरणतया, लोग कहा करते हैं - आदिवासियों का कोर्इ धर्म नहीं है। इनका कोर्इ   आध्यात्मिक चिंतन नहीं है। इनका विश्‍वास एवं धर्म अपरिभाशित है। ये पेड़-पोधों की पूजा करते हैं .... आदि, आदि। इस तरह के प्रश्‍नों एवं शंकाओं को प्रोत्साहित करने वालों से अगर पूछा जाय - क्या, वे अपने विश्‍वास, धर्म आदि के बारे में जानते और समझते हैं ?