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दस्‍तावेज / Records / Plans / Survey

राजी पड़हा‚ भारत और कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि (लिपि)

वर्ष - 1997 में 3‚ 4 एवं 5 जनवरी को राजी पड़हा देवान श्री भिखराम भगत के नेतृत्व में राजी पड़हा‚ भारत का वार्षिक सम्मेलन‚ ब्रहमनडि‍हा‚ लोहरदगा (बिहार/झारखण्ड) में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में उपस्थित पड़हा प्रतिनिधि एवं जनसभा द्वारा कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया‚ परन्तु माननीय श्री भिखराम भगत द्वारा श्री इन्द्रनाथ भगत (माननीय सांसद‚ लोहरदगा) के साथ विमर्श के पश्चात् कहा गया कि - इस नई लिपि के साथ इसका व्याकरण भी जरूरी है। अतएव व्याकरण के लिए भाषाविदों तथा शिक्षाविदों के साथ मिलकर लिपि एवं व्याकरण पर चर्चा कर‚ पड़हा के सामने लायें। इसके बाद ही इसका सामाजिक

कुँड़ुख़ भाषा की लिपि‚ तोलोंग सिकि है – बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान

ज्ञात हो कि बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ मोरहाबादी‚ राँची के सभागार में “कुँडख़ भाषा-साहित्य-लिपि : दशा और दिशा” विषयक कार्यशाला दिनांक 19 सितम्बर 1998‚ दिन शनिवार को सम्पन्न हुआ। यह कार्यशाला‚ जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ राँची तथा बिहार शि‍क्षा परियोजना‚ रातू‚ रांची के संयुक्त तत्वधान में बुलाया गया था। इस कार्यशाला में जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ राँची के निदेशक डॉ॰ प्रकाश चन्द्र उराँव‚ बिहार शि‍क्षा परियोजना‚ रातू‚ राँची के निदेशक श्री विनोद किसपोट्टा (आई.ए.एस.)‚ आयकर अधिकारी श्री प्रभात खलखो‚ ए. जी.

डॉ मुण्डा एवं डॉ इन्दु धान की उपस्थिति में तोलोङ सिकि (लिपि) का लोकार्पण   

डॉ॰ रामदयाल मुण्डा‚ पूर्व कुलपति‚ राँची विष्वविद्यालय‚ राँची एवं डॉ॰ (श्रीमती) इन्दु धान‚ पूर्व कुलपति‚ मगध विश्व्विद्यालय् बोधगया एवं सिद्हु-कान्हु मुरमु विश्वमविद्यालय‚ दुमका द्वारा संयुक्त रूप से एक संवादाता सम्मेलन में दिनांक 15 मई 1999 को तोलोंग सिकि (लिपि) को जनमानस के व्यवहार के लिए लोकार्पित किया गया। यह संवादाता सम्मेलन - तोलोंग सिकि प्रचारिणी सभा‚ रांची‚ सिरासिता प्रकाशन‚ रांची एवं ट्राईबल रिसर्च एनालिसिस कम्युनिकेशन एण्ड एजूकेशन नामक संस्था की ओर से झारखण्ड क्षेत्र की भाषाओं के विकास के लिए विकसित तोलोंग सिकि नामक लिपि को जनमानस के व्यवहार के लिए लोकार्पित करने हेतु आयोजित किया ग

'नई लिपि तोलोंग सिकि सामाजिक सह सांस्कृतिक आधारवाला तथा तकनीकी संगत वाला हो'

आदिवासी भाषाओं के विकास के लिए नई लिपि का आवश्यकता के संबंध में संयुक्त बिहार के आदिवासी बुद्धिजीवि एक साथ मिलकर, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर (भारत सरकार) के प्रोफेसर एवं निदेषक डॉ॰ फ्रांसिस एक्का के साथ होटल महारजा, राँची में बैठक किये। यह बैठक 24 जनवरी 1998 को हुआ। डॉ॰ फ्रांसिस एक्का, बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, मोरहाबादी, राँची के आयोजित कार्यशाला में भाग लेने राँची आये हुए थे। जानकारी मिलने पर डॉ॰ नारायण उराँव, मुझे होटल महाराजा, राँची में डॉ॰ एक्का से भेंट करने के लिए 22 जनवरी 1998 को 6.00 बजे संध्या को बुलाये। निर्धारित समय एवं स्थान पर जब मैं पहूँचा तो वहाँ एक-एक कर कई

कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि के विकास की दिशा में सामाजिक-सह-भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण: पद्मश्री स्व. डॉ रामदयाल मुण्डा

नई लिपि कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि के विकास की दिशा में सामाजिक सह भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण‚ पद्मश्री स्व डॉ रामदयाल मुण्डा द्वारा डॉ नारायण उराँव द्वारा तोलोंग सिकि लिपि के तकनीकि पहलुओं को आसानी से समझने के लिये 1997 में एक पुस्तक की रचना की गई‚ जिसका नाम – Graphics of Tolong Siki  रखा गया और सामाजिक सहयोग से इसे छपवाया गया। इस पुस्तक का लोकार्पण दिनांक 05॰05॰1997 को राँची वि‍श्वदविद्यालय‚ राँची के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में हिन्दी दैनिक‚ प्रभात खबर के प्रधान सम्पादक श्री हरिवंश जी के द्वारा सम्पन्न हुआ। समारोह में श्री हरिवंश जी ने कहा - वर्तमान भूमण्डलीकरण के दौर में पूरे विश्व। में‚

झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की लिपि 'तोलोङ सिकि' पर भाषाविद डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से विमर्श

झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की नई लिपि तोलोङ सिकि, विषय पर भाषाविद डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से विमर्श : झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की नई लिपि तोलोङ सिकि, विषय पर विचार–विमर्श करने के लिए केन्द्रीसय भारतीय भाषा संस्थासन‚ मैसूर  (भारत सरकार) के भाषाविद‚ प्रोफेसर सह निदेशक डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से मैं (डॉ॰ नारायण उराँव) बिहार की राजधानी पटना के होटल सम्राट  में 27 एवं 28 जुलाई 1996 ई0 को मुलाकात किया। उस समय डॉ॰ एक्का‚  ACTION AID  नामक संस्था के सेमिनार में मुख्यर अतिथि के रूप में पटना आये हुए थे। उनके साथ मैंने कई प्रश्नों  पर विस्तृत चर्चा किया। परिचर्चा के प्रथम

साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान (कुँड़ुख़) 2016‚ सम्मान समारोह में स्‍व. डॉ निर्मल मिंज का वक्‍तब्‍य

21 फरवरी 2017 को डॉ॰ निर्मल मिंज द्वारा दिया गया वक्तव्य : परम आदरणीय डॉ॰ विश्व्नाथ प्रसाद तिवारी, अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी, डॉ॰ के॰श्रीनिवासराव, सचिव, साहित्य अकादेमी।
मेरी मातृभाषा कुँड़ुख़ की छोटी सेवा के लिए इतना बड़ा भाषा सम्मान देकर, आपने मुझे और कुँड़ुख़ (उराँव) समाज को सम्मानित किया है, इसके लिए मैं आप लोंगों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा को 8वीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त नहीं होते हुए भी, आपने इस भाषा के सेवक को सम्मान दिया है, इसके लिए कुँड़ुख़ समाज साहित्य अकादेमी के प्रति धन्यवाद अर्पित करता है।

कुँड़ुख भाषा तोलोंग सिकि के विकास की कहानी - डॉ निर्मल मिंज

साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2019 में वक्‍तब्‍य  : कुँड़ुख भाषा तोलोंग सिकि के विकास की कहानी


kuEzux lipi qoloX siki gahi xi:ri

कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि पर वर्ष 2016 में डॉ॰ निर्मल मिंज ने कहा था..

साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍य साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍यसाहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख भाषा) से सम्मानित डॉ॰ निर्मल मिंज का कुँड़ुख भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास पर वर्ष 2016 में वकतव्‍य..