कुँड़ुख़ (उराँव) सामाजिक परम्परा में धर्म का अर्थ ?
विगत दो दशक से परम्रागत आदिवासी समाज आत्मोत्थान के दौर से गुजर रहा है। झारखण्ड आन्दोलन से लेकर अबतक सामाजिक एवं धार्मिक जागरण के नामपर अनेकानेक विचार-गोश्ठी एवं रैलियाँ आयोजित की गर्इ। लोग इन विचार गोश्ठियों में आते और चले जाते। धीरे-धीरे अब ये धुंंध के बादल छंटने लगे हैं। गांव के बुर्जुग, शिक्षाविद, धर्म के जानकार आदि इन गुत्थियों को सुलझाने में अपनी ज्ञान उर्जा का उपयोग कर रहे हैं। कर्इ लोग, अपने एवं अपनों के बीच प्रतिदिन उठ रहे सवालों के जबाब ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर माथा-पच्ची कर रहे हैं। छोटानागपुर के पठार से लेकर असम के चाय बगान तक उठ रहे सामाजिक एवं धार्मिक उलझावपन के उधेड़बुन की कड़ी में