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दस्‍तावेज / Records / Plans / Survey

कुँड़ुख़ (उराँव) सामाजिक परम्परा में धर्म का अर्थ ?

विगत दो दशक से परम्रागत आदिवासी समाज आत्मोत्थान के दौर से गुजर रहा है। झारखण्ड आन्दोलन से लेकर अबतक सामाजिक एवं धार्मिक जागरण के नामपर अनेकानेक विचार-गोश्ठी एवं रैलियाँ आयोजित की गर्इ। लोग इन विचार गोश्ठियों में आते और चले जाते। धीरे-धीरे अब ये धुंंध के बादल छंटने लगे हैं। गांव के बुर्जुग, शिक्षाविद, धर्म के जानकार आदि इन गुत्थियों को सुलझाने में अपनी ज्ञान उर्जा का उपयोग कर रहे हैं। कर्इ लोग, अपने एवं अपनों के बीच प्रतिदिन उठ रहे सवालों के जबाब ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर माथा-पच्ची कर रहे हैं। छोटानागपुर के पठार से लेकर असम के चाय बगान तक उठ रहे सामाजिक एवं धार्मिक उलझावपन के उधेड़बुन की कड़ी में

कुँड़ुख़ (उराँव) परम्परा में अध्यात्मिक मान्यताएँ

साधरणतया, लोग कहा करते हैं - आदिवासियों का कोर्इ धर्म नहीं है। इनका कोर्इ   आध्यात्मिक चिंतन नहीं है। इनका विश्‍वास एवं धर्म अपरिभाशित है। ये पेड़-पोधों की पूजा करते हैं .... आदि, आदि। इस तरह के प्रश्‍नों एवं शंकाओं को प्रोत्साहित करने वालों से अगर पूछा जाय - क्या, वे अपने विश्‍वास, धर्म आदि के बारे में जानते और समझते हैं ?

लरका आंदोलन का अमर शहीद वीर बुधू भगत और अंगरेजी बंदूक

भारत की आजादी की लड़ाई में सन् 1857 या उसके बाद, देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीदों में कुछ के नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं। किन्तु 1857 ई.

सिलागामी (सिलागांई) धरती का लाल क्रांतिकारी क्यों बना?

बीर बुधू भगत, बचपन से ही गरीबी, भ्ाुखमरी के साथ जमींदार, साहुकार, महाजन, बनिया अर्थात् गैर आदिवासियों की बर्बरता को देखे। वे देखे कि किस प्रकार तैयार फसल को जमींदार उठा ले जाते थे, और गरीब गाँव वालों के घर कर्इ-कर्इ दिनों तक चुल्हा नहीं जल पाता, गाँव के बच्चे, बुढ़े सभी भ्ाूख से बिलखते रहते। माँ बहनों का खुन सूखता था, लेकिन इन सभी मार्मिक दृश्यों से जमींदारों का मन तनिक भी नहीं पसीजता था। वे किसानों से कर (मालगुजारी) के रूप में बड़ी रकम वसूल कर ले जाते थे। उन लोगों का विरोध करने का हिम्मत कोर्इ नहीं कर पा रहा था। उलटे सूदखोरों, महाजनों एवं जमींदारों को ब्रिटिश हुकूमत का साथ मिल रहा था। ब्रिटि

जतरा टाना भगत

चउगिरदा हरियर टोड़ंग परता रहचा। नाखो कोंड़ा परता दिम हरियर एथेरआ लगिया। मन्ने मास ती झबरारका अकय दव शोभ’आ लगिया। सलय-सलय एका नगद ताका तागर’आ लगिया। झरना हूँ हहा-हीही बाहरनुम डण्डी पाड़ा लगिया। ओ:ड़ा एका नगद चेरेबेरे मना लगिया। अकय सोहान परता मझी नुम ओन्टा पद्दा रहचा। आ पद्दा ही नामे चिंगरी पुना टोला रहचा। आ पद्दा नुम जतरा भगतस गहि कुन्दरना मंज्जकी रहचा। आस की कुन्दरना सितम्बर 1888 र्इस्वी चान नु मंज्जकी रहचा। र्इद गुमला जिला ता बिसुनपुर बोलोक नू मनी। जतरा भगतस गहि तम्बस ही ना:मे कोडल उराँव अरा तंग्गियो ही नामे लिबरी रहचा। तंग आ:ली गहि नामे बिरसो रहचा। जतरा भगतस गहि ख़द्दर बुधु, बंधु, सुधु अरा दे

22 पड़हा ग्रामसभा बिसुसेन्दरा 2020 का घोषणा पत्र

जैसा कि हम सभी जानते हैं - भारतीय संविधान के निर्माण से पूर्व, भारत में बहुत से राष्ट्र, प्रदेश एवं कबिलार्इ समूह स्वतंत्र रूप से गुजर-बसर कर रहे थे। देश की आजादी के पश्‍चात् नये जीवन की तरह भारतीय संविधान का निर्माण हुआ और वे सभी पुराने दल एक झण्डे के नीचे आ गये। इस नव निर्माण के क्रम में लोगों के बीच अपने समाज एवं सम्प्रदाय के अनुसार हिन्दु पर्सनल लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ, र्इसार्इ विवाह कानून आदि का गठन हुआ और वे उसी के अनुसार चल रहे हैं। भारतीय कबिलार्इ समूह क्षेत्र के लोगों के लिए भी 5 वीं एवं 6 वीं अनुसूचित क्षेत्र के नाम से विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में संविधान में स्थान दिया गया,