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आदिवासी शोध एवं सामाजिक सशक्तिकरण अभियान के तहत व्याख्यान एवं परिचर्चा श्रृंखला

उराँव समाज में पारंपरिक विवाह (बेंज्जा) एवं विवाह विच्छेद (बेंज्जा बिहोड़) और न्यायालय व्यवस्था में वर्तमान चुनौतियाँ" विषयक श्रृंखला परिचर्चा का द्वितीय बैठक आदिवासी कॉलेज छात्रावास के पुस्तकालय कक्ष में आयोजन किया गया। जिसमें निम्न गणमान्य लोगों की अहम उपस्थिति रही :- डॉ नारायण भगत (अध्यक्ष, कुँड़ुख साहित्य अकादमी, राँची), श्रीमती महामनी कुमारी उराँव, (सहायक प्राध्यापक, मारवाड़ी काॅलेज राँची), प्रो• रामचन्द्र उराँव, श्री सरन उराँव (संरक्षक, चाला अखड़ा खोंड़हा, हेहेल,राँची), श्री जिता उराँव (अध्यक्ष,अद्दी अखड़ा,राँची), बहुरा उरांव , डाॅ. विनीत भगत, श्री फूलदेव भगत, जीता उरांव, डॉ. रीना कुमारी, मनोज उरांव, (अध्यक्ष आदिवासी छात्र संघ, रांची विश्वविद्यालय समिति, रांची ), मनोज कुजूर, (सह-संपादक, आदिवासी लाइव्स मैटर), नीतू टोप्पो, गजेंद्र उरांव, जुब्बी उरांव, जगन्नाथ किस्पोट्टा, शिवशंकर उरांव, अजीत उरांव, बुधवा मुंडा, आरती कुमारी, पूजा कुमारी, संजू लाकड़ा,  सुनीता कुमारी आदि की उपस्थिति में परिचर्चा संपन्न हुआ। परिचर्चा में विशेष रूप से बुजोर्गों की उपस्थिति रही। 

व्याख्यान श्रृंखला में प्रो रामचन्द्र उराँव के द्वारा " प्रस्तावित उरांव जनजाति के बीच प्रथागत कानूनों के प्रलेखन / संहिताकरण  के लिए प्रस्तावित रूपरेखा बनाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। इस ड्राफ्ट के महत्वपूर्ण बिन्दु को निम्न प्रकार से बतलाया गया है :-

आरंभिक स्तर पर ड्राफ्ट बनाने और दस्तावेजी करण करने की ओर इंगित किए। उरांव समाज के आवश्यक रीति रिवाज और पड़हा के कानूनों का  दस्तावेजीकरण आवश्यक हो गया है।
ड्राफ्ट में लक्ष्य और उद्देश्य निर्धारण की बात कही।
न्यायिक दृष्टिकोण से रीति रिवाज के मूल्यांकन एवं विकास की बातों को दोहराया गया।
सोशल कस्टम को बढ़ावा देने एवं संवर्धन के तकनीकी पहलुओं पर विस्तार से  काम करने की आवश्यकता है।
सामाजिक और वैधानिक मुद्दों की बातों को प्राथमिकता के साथ ड्राफ्ट में शामिल करने की बात कही।
प्राथागत कानून के साक्ष्य को कोडिफिकेशन करने के प्रावधानों की चर्चा की गई।
विलेज ओरल ट्रेडीशन के अंतर्गत मौखिक रिवाजों एवं नेगचार की पद्धति को संग्रहण कर डॉक्यूमेंटेशन करने के लिए तरीकों की परिचर्चा की गई।

हमारे पूर्वजों के अनुभव एवं उनके पारंपरिक ज्ञान को भी सहेज कर ड्राफ्ट में शामिल करने के बिंदुओं पर चर्चा हुई।
वर्तमान में मौजूद दस्तावेजों जैसे सर्वे रिपोर्टर, विलेज नोट, ग्राम सभा के निर्णय, बुजुर्गों के पास उपलब्ध हस्तलिखित नोट्स आदि के संग्रहण के लिए आवश्यक सुझाव को शामिल करने की बात कही।
उरांव समाज में उपलब्ध लिखित मेमोरीज को भी संग्रहण करने के उपाय सुझाए गए।
उरांव जनजातियों के बीच प्राथागत संस्थाओं को मजबूत करने और पुनर्गठित करने के लिए आवश्यक सुझाव को ड्राफ्ट में सम्मिलित करने की बात कही गई।
 ड्राफ्ट के लिए अनुसंधान पद्धतियों पर विस्तार से चर्चा की गई जिसमें मिक्स्ड रिसर्च मेथड को अपना कर आगे बढ़ने की बातें बताई गई।
 अनुसंधान के लिए विभिन्न टूल जैसे साक्षरता, ग्रुप इंटरव्यू, क्वेश्चन, चेक लिस्ट, ऑब्जर्वेशन आदि को अपनाकर एक सुंदर मसौदा तैयार करने पर बल देने की बात कही गई।
 अनुसंधान क्षेत्र को भी चर्चा में लाया गया जिसमे अभी चार जिलों  रांची गुमला लोहरदगा एवं लातेहार को प्राथमिकता के तौर पर शामिल किया गया है।
 झारखंड में पारंपरिक पड़हा संगठनों के परिसंघ के गठन पर भी चर्चा की गई।

इस बैठक में बाबा सरन उरांव ने अपना सुझाव इस प्रकार रहा :-    
इस इस प्रस्तावित ड्राफ्ट के बिंदुओं की महा महत्व को समझाते हुए कहते हैं कि ड्राफ्ट के सभी बिंदु समाज के लिए बहुत ही सोचनीय प्रतीत होते हैं। इस ड्राफ्ट को तैयार करने के लिए सभी लोगों के द्वारा आर्थिक मदद देते हुए आपसी सहभागिता निभाकर भावी भविष्य के लिए विधि सम्मत पारंपारिक पड़हा व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है, जो इस ड्रॉफ्ट से संभव होता प्रतीत लग रहा है। मौखिक नेक दस्तूर हमारे पूर्वजों के साथ खत्म होता जा रहा है समय की मांग है इसे दस्तावेजी करण किया जाए। और इसे कानूनी जामा पहनाया जाए। अभी रूढ़ी परंपरागत व्यवस्था कोर्ट में जाकर टिक नहीं पाता हैं इसलिए एक विधि सम्मत ढांचा तैयार करने में या ड्राफ्ट काफी सहायक सिद्ध होगा जिसे कोर्ट को भी स्वीकार करना होगा और मान्यता देना होगा।

 नारायण भगत सर का कहना है: -।    
 ड्राफ्ट के सभी बिंदुओं पर एक समग्र रूप से आगे बढ़ने की जरूरत है। प्रस्तावित ड्राफ्ट बन जाने से आगे के नीति निर्धारण में यह ड्राफ्ट काफी कारगर सिद्ध होगा या ड्राफ्ट कानूनी रूप लेगा जो समाज के लिए लाभप्रद सिद्ध होगा। दूसरे लेखकों द्वारा अधूरे ज्ञान वाली लेखन से समाज को क्षति हो रही है इसलिए समाज के युवा लेखकों, रिसर्चरों  को बारीकी से सभी बिंदुओं को मंथन कर लेख और नोट लिखने होंगे। ड्राफ्ट के अधिकतर बिंदुओं पर अपनी सहमति जताए हैं।

जीता उरांव का कहना है :- ड्राफ्ट के विभिन्न बिंदुओं को कागज में उतारकर विधि सम्मत प्रक्रिया अपनाकर और कानूनी प्रावधानों को जोड़कर पोथी बनाकर गांव-गांव पहुंचाने की जरूरत है इस कार्य को पूरा करने के लिए छोटे से छोटे एवं बड़े बुजुर्ग सभी को साथ लेकर चलने की आवश्यकता महसूस हो रही है। बहुत ही अच्छा काम हो रहा है, इसमें पड़हा के सभी खोंड़हा के लोगों का समर्थन प्राप्त होगा।

रांची के सिसाई प्रखंड से, बैठक में सम्मिलित होने आए 22 पड़हा ग्रामसभा के गजेंद्र उराव एवं जुब्बी उरांव ने दिनांक 20 एवं 21 मई 2023 को आयोजित 22 पड़हा विशु सेंदरा ग्रामसभा महासम्मेलन में बैठक में उपस्थित सभी लोगों को सेंदरा में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किए हैं।

झारखंड के साहिबगंज जिले के बरहरवा प्रखंड ग्राम तीन पहाड़ी से बैठक में सम्मिलित होने आए जगन्नाथ किस्पोट्टा का कहना है कि उनके यहां उरांव समाज बांग्ला रिती रिवाज के प्रभाव से जुड़ता जा रहा है उनके यहां पचवा पीढ़ी नामक व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म होते जा रहा है इसलिए वे आग्रह करते हैं कि रुढी व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए एवं समाज के लोगों को जागरूक करने के लिए संगठन के सदस्यों को एक सभा के आयोजन के लिए आमंत्रित करते हैं।

रांची के क्षेत्रीय पड़हा से से बैठक में सम्मिलित होने आए अजीत उराव एवं बुधवा मुंडा का कहना है कि उन्होंने क्षेत्रीय पड़ा का गठन कर लिया है इसे सुदृढ़ करने की जरूरत है। उरांव का पडहा इतिहास लुप्त हो रहा है इसे संरक्षण करने की जरूरत है।

डॉ. विनीत भगत का कहना है :- ड्राफ्ट के विभिन्न बिंदुओं पर अलग-अलग गुट बनाकर लोगों को जोड़ने की आवश्यकता है जिससे ड्राफ्ट के सभी महत्वपूर्ण पहलू गांव गांव तक पहुंचाया जा सकता है। गांव वालों की सुविधा के लिए कार्यशाला का आयोजन कर फ्लो चार्ट बनाकर ड्राफ्ट के महत्वपूर्ण बिंदुओं को बताना आसान होगा। युवाओं में रुचि बढ़ाने और रूढ़ीवादी व्यवस्था के महत्व को फ्लो चार्ट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। नई शिक्षा नीति में भी पड़हा व्यवस्था को शामिल करने की जरूरत है।


महामानी मैडम ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे पूर्वजों का पड़हा संगठन बहुत ही मजबूत था। हमारे बुजुर्गों ने शासन व्यवस्था को बहुत ही बेहतरीन ढंग से संचालित किया। अभी भी इस संगठन को कायम रखने के लिए संगठित होकर पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। आधुनिक समय की मांग है कि उरांव समाज के पुरुष वर्ग को लकड़ा (लकड़बग्घा) के जैसे लड़ने को तैयार होना होगा। जिस प्रकार वीर बुधु भगत निडर होकर हमारे और हमारे समाज के लिए शहीद हो गए। हमें भी अपनी ऐतिहासिक परंपरा एवं धरोहर को बचाने के लिए हर चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। अपने बच्चों को समाज के पड़हा व्यवस्था और पारंपरिक ज्ञान को बतलाना होगा। बच्चों को पढ़ने के लिए पड़हा व्यवस्था पर ग्रंथ, किताब एवं पत्रिका लिखने की आवश्यकता है। अगर पुरुष समाज एकजुट होकर आगे आएंगे तो उन्हे भी महिलाओं का भरपूर समर्थन मिलेगा। हमारे पूर्वजों द्वारा बताए गए मार्ग को बारीकी से देखने की जरूरत है और इसी रास्ते पर चलकर हम एक सुसंगठित समाज का निर्माण कर सकते है।

डा.नारायण उरांव ने कहा :- प्रस्तावित ड्राफ्ट का प्रारूप काफी सराहनीय है कुछ संशोधनों के साथ एवं उरांव समाज के मूल शब्द को सम्मिलित करते हुए इस ड्राफ्ट आगे बढ़ाया जा सकता है। इस कार्य के लिए युवा वर्ग एवं समाज के रिसर्चर समूह को आगे आना होगा एवं बड़े बुजुर्गों का सहयोग लेते हुए प्राथागत पारंपारिक व्यवस्था को फिर से स्थापित करना होगा।

परिचर्चा का सुचारू संचालन डॉ नारायण उराँव द्वारा किया गया और बैठक का समापन श्री फूलदेव भगत के धन्यवाद ज्ञापन के साथ किया गया।
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Manoj

लेखक परिचय: मनोज कुजूर , ग्राम- करकरा, प्रखंड- मंडार, जिला- रांची के निवासी हैं।

दिनांक - 07/05/2023
स्थान - आदिवासी काॅलेज छात्रावास पुस्तकालय, करमटोली राँची
 

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