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Children survive after migration of parents from Jharkhand

'अयंग' के संग (जनजातीय भाषा कुड़ख में अयंक का मतलब होता है, मां) जी नहीं, यह किसी बच्चों का जेल या सरकारी बाल सुधार गृह नहीं.. यह झारखंड के सुदूर गांव का स्कूल है। इसकी साजसज्जा या संसाधन के अभाव पर मत जाइये। इस स्कूल को चलाने की सोच और संचालकों की मानवीय संवेदना गौर करने लायक है। जरा सुनिये यहां रह रहे बच्चों को, आप खुद समझ जाएंगे इनकी व्यथा..

A tribal village of Jharkhand challenges Corona

कोरोना को चुनौती देता झारखंड का एक आदिवासी गांव राजधानी रांची से 12 किमी पर स्थित है यह गांव जराटोली (बड़ाम, नामकोम) एक ओर जहां कोरोना वायरस से देश भर में अफरा तफरी मची है, वहीं झारखंड की राजधानी रांची के निकट एक गांव ऐसा भी है जहां लोग सरकार प्रशासन के मोहताज नहीं। ऐसा नहीं कि यह कोई अति संपन्‍न गांव है। वास्‍तविकता यह है कि यहां ढ़ाई हजार की आबादी के 75 से 80 फीसदी हिस्‍से की आजीविका दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर है। उन्‍होंने अपने गांव को सील कर दिया है। न कोई बाहर जाएगा और न कोई बाहरी अंदर आयेगा। यह पूछे जाने पर कि सरकार प्रशासन से आपकी कोई मांग है, कहते हैं- सरकार अपने शहरियों को ही संभाल ल

कुंड़ुख की लिपि तोलोंग सिकि के उदय की दास्‍तां

भारत के उरावं आदिवासियों की भाषा कुंड़ुख इन दिनों खूब चर्चा में है। झारखंड की हेमंत सरकार ने सरकारी स्‍कूलों में कुंड़ुख भाषा की पढ़ाई का बीड़ा उठाया है। एक समय था जब कुंड़ुख एक संपूर्ण भाषा नहीं महज एक बोली थी। इसकी अपनी लिपि नहीं थी। कई दशकों से संबंधित विद्वान लोग इस बोली की लिपि विकसित करने की कोशिश करते रहे। इसमें अक्षरों की आकृति, वैज्ञानिकता, प्रयोग विधि आदि पर एक सहमति बनाना टेढ़ी खीर थी। और अंतत: वर्ष 1998 और 2000 के बीच डॉ नारायण उरावं और उनकी टीम को अथक मेहनत से सफलता मिली और कुंड़ुख के लिए 'तोलोंग सिकि' लिपि का जन्‍म हुआ। पेशे से चिकित्‍सक डॉ उरावं की उस लम्‍बी यात्रा का वृतांत